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प्रमैयर्थन्द्रिका टीका श०१९ उ०८ सू०१ जीवनिर्वृत्तिनिरूपणम् ४२७ जाव वैमाणियाण' एवं यावद्वैमानिकानामष्टविधा कर्मनिवृत्तिर्भवतीति' अत्र यावत्पदेन भवनपतित आरभ्य ज्योतिप्कपर्यन्ताः सर्वेऽपि जीवाः संग्राह्या, तथा च नारकादारभ्य वैमानिकपर्यन्तचतुर्विंशतिदण्डकजीवानामष्टमकाराऽपि . कर्मनि चितिव्येति ।२ 'काविहाणं भंते !' कतिविधा-कसिमकारा खल्लु भदन्त ! 'सरीरनिवत्ती पन्नत्ता' शरीरनित्तिः प्रज्ञप्ता, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'पंचविहा सरीरनिव्यत्ती पनना' पञ्चविधा-पश्चमकारा शरीरनिचिः प्रज्ञप्ता 'तं जहा' तद्यथा-'ओरालियसरीरनिव्वत्ती' औदारिकशरीरनितिः 'जाव कम्मगसरीरनिबत्ती' यावत् कार्मणशरीरनित्तिा , अत्र हुआ है 'एवं जाव वेमाणियाणं' इसी प्रकार से यह अष्टविध कर्मनिवृत्ति यावत् वैमानिक देवों तक हुआ करती है यहां यावत्पद से भवनपति से लेकर ज्योतिष्क पर्यन्त सब ही जीवों का संग्रह हुआ है तथा च नारक से लेकर के वैमानिक पर्यन्त चौबीसदण्डक के जीवों के आठों प्रकार की कर्मनिवृत्ति होती है ऐसा जानना चाहिये २ अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'कइविहा ण भंते सरीरनिव्वत्ती पण्णत्ता' हे भदन्त! शरीरनिवृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ? उत्तर में प्रक्षु कहते हैं'गोयमा । पंचविहा सरीरनिव्वती पण्णत्ता' हे गौतम ! शरीरनिवृत्ति पांच प्रकार की कही गई है 'तं जहा' जैसे-'ओरालियसरीरनिव्वत्ती, जाव कम्नगसरीरनिव्वत्ती' औदारिकशरीरनिवृत्ति, यावत् कार्मणशरीरनिवृत्ति यहां यावत्पद ले वैक्रिय आहारक और तैजस इन तीन બતાવેલ છે. અહિયાં યાવત્પદથી દર્શનાવરણીયાદિ કર્મનિવૃત્તિ ગ્રહણ કરાઈ छ. 'एवं जाव वेमाणियाण' मा प्रारथी मा मा १२नी मनिवृत्त થાવત્ વૈમાનિક દેવે સુધીમાં થાય છે. અહિયાં યાત્પરથી ભવનપતિથી લઈને
તિષ્ક દેવ પર્યન્ત બધા જ જીવેને સંગ્રહ થયેલ છે. તેમજ નારકેથી આરંભીને વૈમાનિક પર્યન્ત વીસ દંડકના જીને આઠ પ્રકારની કર્મનિવૃત્તિ थाय छे. तेभ समा
હવે ગૌતમ સ્વામી શરીર નિવૃત્તિના સંબંધમાં પ્રભુને પૂછે છે કે – 'कइविहा णं भवे सरीरनिव्वत्ती पण्णत्ता' सन् शरीर निवृत्त teau ४२नी डयामा मापी छ ? तन। उत्तरमा प्रभु ४९ छ -'गोयमा। पंचविहा सरीरनिवत्ती पण्णता' है गौतम! शरी२निता पाय घानी पामा भावी छ. 'तंजहा' मा प्रमाणे छे. 'ओरालियसरीरनिव्वत्ती नाव कम्मगसरीरनिव्वत्ती मोहारि शरीर निवृत्ती यावत् स शरी२ निवृत्ति