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भगवती द्रव्यार्थिशनयेनेत्यर्थः पर्यायरूपेणानित्यताया वक्ष्यमाणत्वात् , तत् किमेकान्तनित्यास्ते भरनावासाः ? इति नेण्यत आह-बन्नपज्जवेहि' इत्यादि 'वनराजवेहि वर्णपर्यवैः कृष्णनीलादिवर्णपर्यायन शाश्वतास्ते 'जावफासपज्जवेहिं असासया' एवं यावत्म्पर्शपर्यायैरशाश्वतास्ते भवनावासाः । अत्र यावत् पदेन गन्धरसयोः संग्रहः तथा च ते भवनावासाः वर्णगन्धरसस्पर्शपर्यायैरशाश्वताः द्रव्यरूपेण तु शाश्वता इत्यर्थः । एवं जाव थणियकुमारावासा' एवं यावत् स्वनितकुमारावासाः यथा अमुरकुमारभवनावासविपये कथिचं तत्सर्व स्तनितकुमारदेवभवनावासवि. पियेऽपि ज्ञातव्यम् संख्पया स्वरूपेण द्रव्यपर्यायाभ्यां चेति भावः । 'केवइया ण शाश्वत है तो इसके लिये कहा गया हैं 'दच्चयाए' कि ये सब द्रव्यार्थिक नय के अभिप्राय ले ही शाश्वत हैं पर्यायाधिशनय के अभिप्राय से नहीं उस अभिप्राय से तो अनित्य ही है यही बात 'वनपज्जवेहि.' इत्यादि सत्र पाठ द्वारा व्यक्त की गई कृष्णलील आदि जो वर्ण पर्यायें हैं, तथा यावत् जोपर्श पर्यायें हैं उनकी अपेक्षा से थे शाश्वत नहीं हैं किन्तु अशाश्वत हैं यहां यावत्पद ले गन्ध रस का ग्रहण हुआ है। इस प्रकार ये भवनावाप्त वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श इनकी पर्यायों से अशाश्वत हैं और द्रव्यरूप से शाश्वत हैं । 'एवं जाव थणियकुमारावासा' जैसा यह कथन असुरकुमारों के भवनावासों के सम्बन्ध में किया गया है हमी प्रकार का कथन यावत् स्तनितकुमारदेवों के भव. नावासों के सम्बन्ध में भी जानना चाहिये जिलदी उनकी संख्या कही गई है उतनी ही उनकी संख्या है जिस प्रकार से ये द्रव्यदृष्टि लवतावासे वी शत शाश्वत छ १ . भाट ४ छ है-'दबटुयाए' मा मधा દ્રવ્યાર્થિક નયની અપેક્ષાએ શાશ્વત છે. અને પર્યાર્થિક નયની અપેક્ષાથી શાશ્વત હોતા નથી તે પર્ણય ચિક નય પ્રમાણે તે અનિત્ય જ છે. એજ વાત 'वन नवेहि' त्याहि सूत्र५४ वा प्रगट छ. ४, नीत विगेरेर વર્ષ પથ છે, તથા યાવત્ જે સ્પર્શ પર્યા છે. તે અપેક્ષાથી શાશ્વત હતા નથી. પરંતુ અશાશ્વત છે. અહિયાં યાત્પરથી ગબ્ધ અને રસ ગ્રહણ કરાયા છે. એ રીતે આ ભવનાવાસો વર્ણ, ગંધ, રસ અને સ્પર્શ એ બધાની पायाथी मशाश्वत छ, भने द्र०यनय ३२ मे शत छ 'एव जाव थणियकुमारावासा' असुमाराना नवनवासाना समयमा २ मा ४थन ४२वामां આવ્યું છે, એ જ પ્રમાણેનું કથન યાવત્ સ્વનિતકુમાર દેના ભવનાવાસના સંબંધમાં પણ જાણવું. જેટલી જેની સંખ્યા કહેવામાં આવી છે તેટલી જ તેની