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reeद्रका टीका श०१९ उ० १ सू० १ लेश्यास्वरूपनिरूपणम्
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टीका - " रायगिहे जाव एवं क्यासी" राजगृहे यावद गौतम एवमवादीत् अत्र यावत्पदेन गुणशिकं चैन्यम् भगवान् समवतः परिषत् समागता धर्मकथानन्तरं परिषत् मविगता, तदनु प्राञ्जलिपुटो गौतमः, एतदन्तस्य प्रकरणस्य संग्रहो भवति किमुक्तवान् गौतमः तत्राह - ' कइ णं' इत्यादि । 'कइ ' संते ! लेस्साओ पन्नत्ताओ" कति खलु भदन्त ! लेश्याः प्रज्ञप्ता इति प्रश्नः, भगवानाह - 'गोमा' इत्यादि । 'गोग्रमा' हे गौतम! 'छ लेस्साओ पनचाओ' पलेश्याः प्रज्ञताः, कृष्णादिद्रव्यसंबन्धात् आत्मनः परिणामविशेषो लेग्या यावत्पर्यन्तं योगा
'रायगिहे जाव एवं बयासी' इत्यादि । टीकार्थ -- 'रायगिहे जाव एवं वयासी राजगृहनगर में यावत् गौतम ने इस प्रकार से पूछा यहां यावताद से इस प्रकरण का संग्रह हुआ है कि उस राजगृह नगर में गुगशिल उद्यान था । उसमें भगवान् का आगमन हुआ परिषदा वहां पहुंची प्रभु ने कथा कही पत् परिषत् वापिस चली गई, तब गौतम ने दोनों हाथ जोडकर प्रभु से ऐसा पूछा ऐसा सम्बन्ध यहां यावत्पद से लगाया गया है प्रभु से पूछा - 'कह णं भंते । लेस्साओ पन्नन्ताओ' तो इसे बताने के लिये यह सूत्र कहा गया है, हे भदन्त ! लेश्याएँ कितनी होती हैं ऐसा गौतम ने प्रभु से पूछा है । उत्तर में प्रभु ने कहा- 'गोमा ! छल्लेस्साओ पनन्ताओ' हे गीत ! daurएँ छ होती हैं कृष्णादिद्रव्य के सम्बन्ध से जो आत्मा का परिणाम विशेष होता है उसका नाम बेश्या है, यह लेल्या जब तक योग रहते हैं
'रायगिहे जाव एवं वयासी'
टीडार्थ - रायगिहे जाव एवं वयासी' गृह नगरभां यावत् गौतम સ્વામીએ પ્રભુને આ પ્રમાણે પૂછ્યુ. અહિયાં ચાવત્ પદથી નીચે પ્રમાણે પાના સગ્રહ થયેા છે. રાજગૃહે નગરમાં ગુરુશિલક નામના ઉદ્યાનમાં ભગવાન્ મહાવીર સ્વામી પધાર્યાં. પ્રભુનુ આગમન સાંભળીને પરિષદા પ્રભુને વ'દના કરવા આવી પ્રભુએ તેઓનેધદેશના આપી. તે ધમ દેશના સાંભળીને પ્રભુને વંદના નમસ્કાર કરીને પરિષદા પાતપાતના સ્થાને પાછી ગઈ છે પછી પ્રભુની પયુ પાસના કરતા એવા ગૌતમ સ્વામીએ અન્ને હાથ लेडीने अलुने या अभागे पूछयु - क्रइणं भंते । लेस्साओ पण्णत्ताओ' हे ભગવત્ લેશ્યાએ કેટલા પ્રકારની કહેવામાં આવી છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુએ प्रभा - 'गोयमा ! छ केप्साओ पण्णत्ताओ' हे गौतम! वेश्याओ छ થાય છે. કૃષ્ણાદ્વિ દ્રવ્યના સબધથી આત્મામાં જે કનુ પરિણમન થાય છે,