________________
३५०
भगवतीसूत्र वनस्पतिकायिकानां जीवानाम् 'जावइया सरीरा' यावत्कानि शरीराणि 'से एगे सुहमवायुपरीरे' तदेकं सूक्ष्मवायुशरीरं भवति 'असंखेजाणं सुहुमचाउसरीराण' असंख्येयानां सूक्ष्मवायुशरीराणां वायुरेव शरीरं येषां ते वायुशरीरा: सूक्ष्माश्चते वायुशरीराश्चेति सूक्ष्मवायुशरीराः तेषां सूक्ष्मवायुशरीराणाम् असंख्येयानां सूक्ष्मायुकायिकानाम् 'जावइया सरीरा' यावत्कानि शरीराणि 'से एगे मुहुमे तेउसरीरे' तदेकं सूक्ष्म तेज-शरीरम् 'असंखेज्जाणं मुहुमतेउकायसरीराणं' असंख्येयानां सूक्ष्मतेजस्कायशरीराणाम् 'जावइया सरीरा' यावत्कानि शरीराणि 'से एगे मुहुमे आउसरीरे' तदेक सूक्ष्मापशरीरम् 'असंखेजाणं सुहुम आउकाइयसरीगणं' असंख्येयानां सूर्यमाप्कायिकशरीराणाम् 'जावइया सरीरा' यावणस्सहकाइयाण' हे गौतम ! अनन्त सूक्ष्मवनस्पतिकायिकों के जितने शरीर होते हैं । 'से एगे सुहुमवाउसरीरे' उतना शरीर एक सूक्ष्म वायुकायिक जीव का होता है तात्पर्य कहने का यह है कि अनन्त सूक्ष्म वनस्पतिकायिकों के असंख्यात शरीर को एकत्रित करने पर जो समुदाय रूप में शरीर का प्रमाण होता है उतना प्रमाण एक सूक्ष्म वायुकायिक जीव के शरीर का होता है ऐसा ही कथन आगे भी जानना चाहिये । 'असंखेज्जाणं सुहुम बाउसरीराणं०' असंख्यात सूक्ष्मवायुकायिकों के जितने शरीर हैं-'से एगे सुहुमे तेउसरीरे०' उतना एक शरीर सूक्ष्म एक तेजस्कायिक जीव का होता है 'असखेज्जाणं सुहम तेउकाय सरीराणं०' इसी प्रकार से असंख्यात सूक्ष्म तेजस्कायिक जीवों के जितने शरीर होते हैं 'से एगे सुहुमे आउसरीरे० उतना एक शरीर एक सुहुमवणस्तइकाइयाणं०' ३ गौतम! मनन्त सूक्ष्म वनस्पतिहिन रेखा शरीर डाय छ. 'से एगे सुहुमवाउसरीरे' भेटमा शरी२ मे सूक्ष्म वायुायिहाना હોય છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે-અનન્ત સૂમ વનસ્પતિકાયિકાના શરીરને એકઠા કરવાથી સમુદાય રૂપથી શરીરનું જે પ્રમાણ થાય છે, એટલું જ પ્રમાણે એક સૂક્ષ્મ વાયુકાયિક જીવના શરીરનું થાય છે. એ જ પ્રમાણનું ४थन मा ५ सभा . 'असंखेज्जाण सुहुम वाउसरीराणं०' असभ्यात सूक्ष्म वायुविहीन रेसा शरीर डाय छ, 'से एगे सुहुमे तेउसरीरे०' तर शरीर सूक्ष्म arयि पनु डाय छे. 'असंखेज्जाणं सुहुम तेउकायसरीराणं०' मे शत मसभ्यात सूक्ष्म यि वाना रेखा शरीर डाय छ, 'से एगे सुहुमे आउसरीरे से शरीर मे सक्षम मयि व डाय छे. 'असंखेज्जाण सुहमभाउकाइयसरीराण'