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threat टीका श०१९ ३०३ सू०१ लेश्यावान् पृथ्वीं कायिकादिजीवनि० ३२१ रन्ति वा परिणमन्ति वा शरीरं वा वध्नन्ति? इति पूर्वपक्षः, भगवानाह - 'ओयमा ' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम! 'जो हणडे समट्टे' नायमर्थः समर्थः अपि तु ' अनंता वणस्सइकाइया एगयओ साधारणसरीरं वंधति' अनन्ता वनस्पतिकायिकजीवा एकत एकीभूय साधारणमेकं शरीरं वनन्ति 'एमओ साहारंणसरीरं after ' एकत: एकीभूय साधारणशरीरम् - एकशरीरं बद्ध्वा 'तओ पच्छा आह रंति वा परिणामेति वा' ततः पश्चात् साधारणशरीरबन्धनानन्तरमाहरन्ति आहृत पुद्गलजातान् परिणमयन्ति ' सेसं जहा तेउकाइयाणं जान उन्नति' शेषं यथा तेजस्कायिकानां यावद्दुद्वर्तन्ते शेषमुक्तादन्यत् सर्वं तेजस्कायिकवदेव ज्ञातव्यम्
करते हैं ? बन्ध कर के वे उसके योग्य आहारपुहलों का आहरण करते हैं ? आहारपुद्गलों के बाद क्या वे उस आहार को परिणमाते हैं परि
माने के बाद क्या वे फिर विशिष्ट शरीर का बन्ध करते हैं ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु कहते हैं - 'गोयमा०' हे गौतम! 'णो इण्डे समट्टे' यह अर्थ समर्थ नहीं है, क्योंकि 'अर्णता वणस्लइकाइया ०' terrestपतिकायिक जीव एकत्रित होकर एक साधारण शरीर का बन्ध करते हैं । 'एगओ०' एक होकर साधारण शरीर का बन्ध करके बाद में वे उसके प्रायोग्य आहारपुद्गलों को ग्रहण करते हैं । उनको ग्रहण करने के बाद फिर वे उस आहार को असार साररूप अंश में परिणमाते हैं उसके परिणमाने के बाद फिर वे विशिष्ट रूप से पुनः शरीर का बन्ध करते हैं । 'सेसं जहा तेडकाइयाणं जाव उच्चर्वृति' સ્પતિકાયિક જીવા એકઠા થઈને સાધારણ શરીરના ખધ કરે છે ? અને અન્ય કર્યાં પછી તે તેના ચાગ્ય આહાર પુદ્ગલેાનુ આહરણ કરે છે? અને આહાર પુદ્ગલાના આહરણ પછી તે આહારને પરિણુમાવે છે અને પરિણभाव्या पछी तेथे विशिष्ट शरीरने। अध उरे छे ? 'गोयमा ।' हे गौतम! 'जो इणट्टे खमट्टे' या अर्थ' रोमर नथी प्रेम है- 'अणतावणरसइकाइया०' अनन्त वनस्पतियिः लव मेठा थाने साधारण शरीरनो गंध रे छे. 'एगओ०' એકઠા થઈને સાધારણુ શરીરને ખધ કર્યાં પછી તે તેના પ્રાચેાગ્ય આહારના પુદ્ગલાને ગ્રહણ કરે છે? તેને ગ્રહણ ક્રર્યાં પછી તેઓ તે આહારને અસાર–સાર રૂપ અશથી પરિણુમાવે છે. તેને પરિણમાળ્યા પછી ते विशेष ३५थी इरीथी शरीरने मध उरे छे. 'सेसं जहा वेडकाइयाणं जाव उव्वट्टति' मडियां ? अथन ड्यु' छे, तेनाथी अतिरिक्त माडीनुं मधु
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