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भगवतीस्त्र ___टोका--'देवे णं भंते । देवः खलु मदन्त ! 'महिडिए जाव महासोरो 'महद्धिको यावन्महासौख्यः अत्र यावत्पदेन महायशाः महावलो महाद्युतिक) एतेषां विशेषणानां संग्रहो भवति 'रूवसहस्सं विउवित्ता' रूपसहस्रं विकुव्य 'प, अनमन्नेणं सद्धि संगाम संगामित्तए' प्रभुः अन्योऽन्येन साई संग्राम संग्रामयि तुम् , हे भदन्त ! महद्धिको महाद्युतिको महायशाः महासौख्यो देवः सहस्ररूपाणि विकुयं मिथः संग्रामं कर्तुं किं समर्थोऽसमर्थोवेति प्रश्नः, भगवानाह-'हंता' इत्यादि । 'हंता पथू' हन्त प्रभुः, हे गौतम ! महासौख्यादि गुणोपेतो देवो रूपसहस्रं विकुळ मिथः संग्रामं कर्तुं समर्थों भवतीत्युत्तरम् । पुनः प्रश्नयति गौतमः 'ताओ णं' इत्यादि । 'ताओ णं भंते!' तानि खलु भदन्त ! 'वोदीओ कि एगजीवफुडाओ अणेगजीवफुडाओ' 'बोदयः' शरीराणि किम् एकजीवस्पृष्टानि अने
टीकार्थ-इस सूत्र द्वारा गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है कि 'देवे गंभंते !' हे भदन्त ! जो देव परिवार विमान भादि महाऋद्धि से युक्त है। यावत् महायशस्वी है । महाबलिष्ठ है। महाद्युतिक है और महासुख से संपन्न है वह एक हजार रूपों की चिकुर्वगा करके क्या उन विकुर्वित हजार रूपों के साथ संग्राम करने के लिये समर्थ है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं। हे गौतम! पूर्वोक्त महासौख्यादि विशेषणोंवाला देव हजाररूपों की विकुर्वणा करके उनके साथ संग्राम करने के लिये समय है, असमर्थ नहीं है।
अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'ताओणं भंते हे भदन्त ! उस देवके द्वारा जो वे हजाररूप विकुर्वित किये गये हैं। उन सब में एक ही जीव है ? या भिन्न २रूपों में भिन्न २ जीव हैं। अर्थात् विकुर्वित वे
ટીકાર્થ––આ સૂત્રથી ગૌતમસ્વામીએ પ્રભુને એવું પૂછયું છે કે– "देवे णं भंते !' उस परिवार विभान विगैरे महाद्विपापा २ દેવ છે, યાવત્ મહાયશસ્વી છે. મહાબળવાળે છે. મહાદ્યુતિવાળે છે. અને મહાસુખવાળે છે, તે દેવ એક હજાર રૂપની સાથે સંગ્રામ કરવા સમર્થ છે? કે અસમર્થ છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે છે કે--હે ગૌતમ? પૂર્વોકત મહાસુખ વિગેરેથી યુક્ત દેવ હજાર રૂપોની વિમુવણા કરીને તે રૂપે સાથે સંગ્રામ કરવા સમર્થ છે, અસમર્થ નથી.
शथी गौतम स्वामी प्रभुने भयु' पूछे छे --"ताओ णं भवे". ભગવન તે દેવે જે હજાર રૂપિની વિક્વણુ કરી છે, તે બધામાં એક જ જીવ
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