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भगवतीस्वे से केगटेणे' इत्यादि से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चइ जाव भविए वि अहं' तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते यावत् भव्योऽप्यहम् अत्र यावस्पदेन 'एगे वि अह' इत्यारभ्य "अणेगथूयभाव' इत्यन्तस्य ग्रहणं भवति । भगवानाह-'सोमिला' इत्यादि । 'सोमिला' हे सोमिल ! 'दबट्टयाए एगे वि अहं' द्रव्यार्थतया एकोऽप्यहम् हे सोमिल ! जीवद्रव्यस्यैकत्वेन एकोऽहम् न तु प्रदेशार्थत्या एकोऽहम् तथा चानेकत्वात् ममेत्यवयवादीनामनेरुत्वोपलम्भो न वाधको भवति यथा पृथिव्यादि भेदेन द्रव्याणामने कत्वेऽपि सकलद्रव्यानुगतद्रव्यत्वधर्म पुरस्कृत्य द्रव्यमित्याकारकमयोगो नानुपपन्नः तथा जीवप्रदेशानामनेकत्वेऽपि जीवत्यरूपद्रव्यकत्वमादाय एकोऽहमिति प्रयोगो नानुपपन्नोऽपि तु उपपद्यते एवेतिभावः, तथा पूछता है कि-'से केणटणं' इत्यादि हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि मैं यावत् भविष्यकालीन अनेक परिणामोंवाला भी हैं. यहां यावत्पद से 'एगे वि अहं' इस पाठ से लेकर 'अणेगभूयभाव यहां तक का पाठ गृहीत हुआ है इस लोमिल के प्रश्न के उत्तर में प्रभु कहते हैं 'लोमिलादब्वयाए एगे वि अहं' हे लोमिल ! मैं एक भी ऐसा जो मैंने कहा है वह जीवद्रव्य की एकता को लेकर कहा है प्रदेशार्थना. को लेकर ऐसा नहीं कहा है हम एकत्व बाधक अव्यादिकों की अनेकना का उपलम्म नहीं होना है क्योंकि जैसे पृथिवी आदिके भेद से द्रव्य में अनेकला होने पर भी सकलद्रव्यानुगत द्रव्य एक है इस प्रकार का कथन वहां बाधक नहीं होता है उसी प्रकार से जीव के प्रदेशों में अनेकता होने पर भी जीवत्वरूप द्रव्य की एकता को लेकर मैं एक हूं तभ सम प्रसुन भा प्रमाणे ५ वाया. 'से केणट्रेणं' त्या ભગવન આપ એવું શા કારણથી કહે છે? કે-યાવત ભવિષ્ય કાળ સંબંધી भने परिणामी पामे५४ महियां यावत् ५४थी 'एगे वि अहं' या पाथी बने 'अणेगभूय भाव' महि सुधान। ५४ अपराये। छ. सोभितना मा प्रश्रमी उत्त२ मा५तi प्रभु ४ छे ४-'सोमिला ! दव्वदयाए एगे वि अहं' હે સોમિલ હું એક છું તેમ મેં કહ્યું છે, તે જીવ દ્રવ્યની એકતાને લઈને કહ્યું છે. પ્રદેશાર્થતાને લઈને તેમ કહ્યું નથી આ એકત્વનો બોધ કરનાર અવયવાદિકના અનેકપણાને ઉપલભ્ય થતું નથી. કેમ કે-જેમ પૃથ્વી વિગેરેના ભેદથી દ્રવ્યમાં અનેકપણું હોવાથી સકલ દ્રવ્યાનુગત છ દ્રવ્યત્વ ધર્મની અપેક્ષાથી તે દ્રવ્ય એક છે, આ રીતનું કથન ત્યાં બાધક થતું નથી