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भगवतीसूत्रे आउकाइयस्स वि एवमप्कायिकस्यापि जघन्योत्कृष्टाभ्यां स्थितितिव्या जघन्यतोऽन्तर्मुहूर्तम् उत्कृष्टतस्सातिरेकसागरोपमद्वयमितिभावः । 'तेऊ वाऊ जहा नेरइयस्स' तेजो वायवोर्यथा नैरयिकस्य भव्यद्रव्यतेन कायिकस्य तथा भव्यद्रव्यवायुकायिकस्य च स्थितिविषये भव्यद्रव्यनारकवदेव स्थितिः ज्ञातव्या, जघन्यतोऽन्तर्मुहूर्तम् उत्कृष्टतः पूर्वकोटिरिति । देवादीनां युगलिकानां च तत्रोत्पादाभावात् 'वणस्तइकाइयस्स जहा पुढवीकाइयस्स' वनस्पतिकायिकस्य यथा प्रथिवीकायिकस्य, भव्यद्रव्यवनस्पतिकायिकस्य स्थितिः भव्यद्रव्यपृथिवीकायिकत्रदेव ज्ञातव्या जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम् , उत्कृष्टतः सातिरेकप्तागरोपमद्वयं स्थितिरिति भावः । 'बेइंदियस्स तेइंदियस्स चउरिदियस्स जहा नेरइयस्स द्वीन्द्रियस्य त्रीन्द्रियस्य चतुरिन्द्रियस्य यथा नैरयिकस्य, भव्यद्रव्यद्वीन्द्रियस्य भव्यद्रव्यत्रीन्द्रियस्य भव्यद्रव्यचतुरिन्द्रियस्य स्थितिः भव्यद्रव्यनारकस्थितिवदेव ज्ञातव्या जघन्येन आश्रित करके कही गई है । 'एवं आउक्काइयस्स वि' इसी प्रकार की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अकायिक की भी जाननी चाहिये । 'तेऊ. वाऊ जहा नेरइयरस' भव्यद्रव्यनारक की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट जितनी कही गई है, उतनी ही जघन्य उत्कृष्ट स्थिति भव्यदन्यतैजसकायिक की और भव्यद्रव्यवायुकायिक की समझ लेनी चाहिये। अर्थात् जघन्य से अंतर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट से एक करोडपूर्व 'वणस्सइकाइयस्त जहा पुढवीकाइय' अर्थात् जयद्रव्य वनस्पतिकाधिक की स्थिति भव्यद्रव्यपृथ्वीकायिक के जैसी कह देनी चाहिये। 'वेइंदियस्सतेइंदियस्स चाउरिदियस्स जहा नेरझ्यस्स' भव्यद्रव्यद्वीन्द्रियजीव की भव्यद्रव्य तेइन्द्रिय जीव की और भव्यद्रव्यचौइन्द्रिय जीव की स्थिति भव्यद्रव्यनारक के जैली ही जघन्य और उत्कृष्ट से है ऐसा આજ પ્રમાણેની સ્થિતિ જઘન્ય અને ઉત્કૃષ્ટથી અપકાયિકાની પણ સમજવી. "तेउ वा जहा नेरइयस्स" धन्य मन greeी १०य द्रव्य ना२नी स्थिति જેટલી કહી છે. તેટલી જઘન્ય અને ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ ભવ્ય દ્રવ્ય તેજસ્કાયિકની અને ભવ્ય દ્રવ્ય વાયુકાયિકની સમજી લેવી. અર્થાત્ જઘન્યથી અંતર્મુહૂર્તની मन geeथा में सागरोपमथी ६ मधिर ४ी छे. "बेइंदियस्स तेइंदियस्स चरिदियस्स जहा नेरइयस्स" सत्यद्रव्यहीन्द्रिय नी तथा सव्यद्रव्य ત્રિીન્દ્રિયજીવની અને ભવ્ય દ્રવ્ય ચતુરિંદ્રિય જીવની સ્થિતિ જઘન્ય અને ઉકછરૂપથી ભવ્ય દ્રવ્ય નારક પ્રમાણે છે તેમ સમજવું અર્થાત્ જઘન્યથી એક मत इतनी भने टमी पूोटिना. छे, “पंचिंदियतिरिक्खजोणियस्स