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प्रमैयचन्द्रिका टीका श०१८ उ०९ सू० १ भव्यद्रव्यनारकादिनां निरूपणम् १९७ भदन्त !' भवियदव्यनेरइया भवियदव्बनेरइया' भव्यद्रव्यनेरयिका भव्यद्रव्यनैरयिकाः भविष्यत् पर्यायस्य यत् कारणं तत् द्रव्यमिति कथ्यते द्रव्यतया नारका द्रव्यनारकाः न तु भावेन भविष्यकाले नारकत्वेन उत्पस्यमानत्वात् । अतः भव्यशब्देन विशेपिता इति ते च नैरयिकत्वेन उत्पत्स्यमानाः पञ्चेन्द्रियतियग्योनिको वा मनुष्यो वा भव्यद्रव्यनैरयिकतया व्यपदिश्यन्ते एते च भव्यद्रव्यनैरयिका एकभविक-बद्धायुष्काऽभिमुखगोत्रभेदात् त्रिविधा भवन्ति तत्र एकमविका:-ये विवक्षितैकभवानन्तरमेव नैरयिकरूपेण उत्पत्स्यन्ते एकमविकाः कथ्यन्ते ।। आगत यावस्पद ले प्रदर्शित की गई है । इस प्रकार से क्या पूछा सो ही विषय 'अस्थि ण भंते ! अक्यिबनेरइया २' इस सूत्रपाठ द्वारा प्रकट किया गया है। भविष्यत् पर्याय का जो कारण होता है वह 'द्रव्य' है ऐसा कहा गया है। द्रव्य की अपेक्षा जो नारक हैं वे द्रव्य. नयिक हैं। वर्तमान पर्याय से जो नारक है वे द्रव्यनरयिक नहीं वे भावनारक हैं किन्तु भविष्यकाल में जो जीव नारक की पर्याय से उत्पन्न होनेवाला है चाहे वह पंचेन्द्रियतियश्च हो चाहे मनुष्य हो वही जीव भव्यद्रव्यनयिक रूप से कहा गया है। ये भव्यद्रव्य नैरथिक एकभविक, बद्धायुष्क और अभिमुखनामगोत्र इस प्रकार से ३ प्रकार के कहे गये हैं, जो जीव विवक्षित एकभव के अनन्तर ही नारफरूप से उत्पन्न होने के योग्य है, अर्थात् आगे उत्पन्न होनेवाले हैं वे एकभविक भव्यद्रव्यनरथिक कहे गये हैं । बद्धायुक-जो पूर्व भव संबंधी आयु के तृतीय भाग आदि के शेष रहने पर नारक की आयु भन्न थ न विनय सहित प्रभुने मा प्रभारी ५७यु:--"अस्थि णे भंते ! भवियब्वनेरइया" भविष्यत् पर्यायर्नु रे ॥२५ डाय छे. ते “व्य" छे तम કહેવામાં આવ્યું છે. દ્રવ્યની અપેક્ષાએ જે નારક છે. તેઓ દ્રવ્યનરયિક છે. વર્તમાન પર્યાયથી જે નારકો છે, તે દ્રવ્ય નૈરયિકો નથી તેઓ ભાવનૈરયિક છે, પરંતુ ભવિષ્યકાળમાં જે જીવે નારકની પર્યાયથી ઉત્પન્ન થવાના છે, ચાહે તે તે પચેન્દ્રિય તિર્યંચ હોય કે મનુષ્ય હેય તે જીવ ભવ્ય દ્રવ્ય નૈરયિક કહેવાય છે. આ ભવ્ય દ્રવ્ય નરયિક એક ભવિક ૧, બદ્ધાયુષ્ક ૨, અને અભિમુખ નામગાત્ર ૩, એ રીતે ત્રણ પ્રકારના કહ્યા છે. જે જીવ એક ભવ પછીના ભાવમાં નારકપણુથી ઉત્પન્ન થવાને ચગ્ય હેય અર્થાત ભવિષ્યમાં ઉત્પન્ન થવાના હોય