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हंता विईवएज्जा। से णं तत्थ उदउल्ले सिया ? नो तिणढे समढे, णो खलु तत्थ सत्थं कमति।
(३) (प्र.) भगवन् ! क्या व्यावहारिक परमाणु पुष्करसंवर्तक नामक महामेघ के बीचोंबीच से जा सकता है ?
(उ.) हॉ, जा सकता है। (प्र.) क्या वह वहाँ पानी से गीला हो जाता है ?
(उ.) नहीं, ऐसा नही हो सकता। पानी से भीगता नहीं, गीला नहीं होता है क्योंकि अप्काय रूप शस्त्र का उस पर प्रभाव नहीं पड़ता।
विवेचन-पुष्करसवर्तक एक महामेघ का नाम है, जो उत्सर्पिणी काल के इक्कीस हजार वर्ष वाले दुषम-दुषम नामक प्रथम आरे की समाप्ति पर दूसरे आरे के प्रारम्भ में सर्वप्रथम बरसता है। यह पुष्करसवर्तक नामक महामेघ लगातार सात दिन-रात धारा प्रवाह बरसता है, इससे भूमि की समस्त रूक्षता, भूमि का समस्त ताप, उष्णता आदि अशुभ प्रभाव नष्ट हो जाते है। इस मेघ मे जल धारा का प्रवाह बहुत सघन होता है।
(3) (Q.) Bhante ! Does this Vyavahar paramanu (empirical ultimate-particle of matter) pass through the great cloud called Pushkarasamvartak ?
(Ans.) Yes, it does. (Q.) If so, does it get wet with water there?
(Ans.) That is not possible because no weapon (in the form of water) prevails there.
Elaboration Pushkarasamvartak is the name of a specific dense and great cloud that is said to rain first of all at the end of the twenty one thousand years long first epoch (Dukham-dukham) and the beginning of the second epoch (Dukham-sukham) of the progressive cycle of time This great cloud rains incessantly for seven days and pacifies all the hostile conditions including aridity and excessive heat of the earth The rain caused by this cloud is very intense
(४) से णं भंते ! गंगाए महाणईए पडिसोयं हव्यमागच्छेज्जा ? हंता हव्यमागच्छेज्जा।
प्रमाण-प्रकरण
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The Discussion on Pramana
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