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४६६. (प्र.) सर्ववैधोपनीत क्या है ?
(उ.) (जिसमें किसी भी प्रकार की समानता न हो, उसे सर्ववैधोपनीत कहते है) यद्यपि सर्ववैधर्म्य में उपमा नहीं होती है, तथापि उसी की उपमा उसी को दी जाती है, जैसे-नीच ने नीच के समान, दास ने दास के समान, कौए ने कौए जैसा, श्वान (कुत्ता) ने श्वान जैसा और चांडाल ने चांडाल के समान काम किया। यही सर्ववैधPफ्नीत है।
विवेचन-किचित्वैधोपनीत में असमानता कम, समानता अधिक रहती है। प्रायःवैधोपनीत मे असमानता अधिक, समानता बहुत ही अल्प मात्र होती है। वायस और पायस नाम मे मात्र दो अक्षरों की समानता है। किन्तु वायस चेतन है और पायस जड पदार्थ है। इसलिए दोनों मे साम्य नही हो सकता है। केवल ध्वनि का साम्य प्रतीत होता है।
सर्ववैधोपनीत सर्वसाधोपनीत के एकदम विपरीत है। इसमे नीच की अत्यन्त नीचता प्रकट करने के लिए नीच को नीच का ही उदाहरण दिया जाता है। अर्थात् नीच व्यक्ति जैसा महापाप नही कर सकता, वैसा इसने किया। यह अर्थ व्यक्त होता है।
॥ भावप्रमाणपद प्रकरण समाप्त ॥ 466. (Q.) What is this Sarva vardharmyopaneet upamaan (analogical knowledge based on complete dissimilarity) ? ____ (Ans.) There is no analogy in complete dissimilarity, yet an object is compared with itself. For examples (it is commonplace to say)—a mean person has acted like a mean person; a servant has acted like a servant; a crow has acted like a crow; a dog has acted like a dog; a lowly individual has acted like lowly individual.
This concludes the description of Sarva valdharmyopaneet upamaan (analogical knowledge based on complete dissimilarity). This also concludes the description of Vaidharmyopaneet upamaan (analogical knowledge based on dissimilarity). This concludes the description of Upamaan Pramana (standard of validation by analogical knowledge).
Elaboration—In case of Kinchit vardharmyopaneet upamaan (analogical knowledge based on minimum dissimilarity) the analogy is based on less dissimilarities and more similarities. In case of Prayah sadharmyopaneet upamaan (analogical knowledge based on limited similarity) the dissimilarities are more and similarities are very little
भावप्रमाण-प्रकरण
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The Discussion on Bhaava Pramana
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