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(११) समवतार-किस सामायिक का समवतार किस करण मे होता है ? द्रव्यार्थिकनय की अपेक्षा से गुणप्रतिपन्न जीव सामायिक है अतः उसका समवतार द्रव्यकरण मे होता है। पर्यायार्थिकनय की दृष्टि से सम्यक्त्व, श्रुत, देशविरति और सर्वविरति जीव के गुण है, अतः उनका समवतरण भावकरण मे होता है। भावकरण के दो भेद है-श्रुतकरण और नोश्रुतकरण। श्रुत-सामायिक का समवतार मुख्यतः श्रुतकरण में होता है। शेष तीनो सामायिको-सम्यक्त्व-सामायिक, देशविरति-सामायिक और सर्वविरति-सामायिक का समवतार नोश्रुतकरण में होता है।
(१२) अनुमत-कौन नय किस सामायिक को मोक्षमार्ग रूप मानता है? जैसे-नैगम, सग्रह और व्यवहारनय तप-संयमरूप चारित्र-सामायिक को, निर्ग्रन्थप्रवचनरूप श्रुत-सामायिक को और तत्त्वश्रद्धानरूप सम्यक्त्व-सामायिक को, इन तीनों सामायिको को मोक्षमार्ग मानते हैं। सर्वसंवररूप चारित्र के अनन्तर ही मोक्ष की प्राप्ति होने से ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ तथा एवभूत, ये चारो नय संयमरूप चारित्र-सामायिक को ही मोक्षमार्ग रूप मानते है।
(१३) किम्-सामायिक क्या है? द्रव्यार्थिकनय के मत से सामायिक जीवद्रव्य है और पर्यायार्थिकनय के मत से सामायिक जीव का गुण है।
(१४) कितने प्रकार की सामायिक कितने प्रकार की है? सामायिक तीन प्रकार की है(१) सम्यक्त्व-सामायिक, (२) श्रुत-सामायिक, और (३) चारित्र-सामायिक।
(१५) किसको-किस जीव को सामायिक प्राप्त होती है ? जिसकी आत्मा सयम, नियम और तप मे सन्निहित होती है तथा जो जीव त्रस और स्थावर-समस्त प्राणियो पर समताभाव रखता है, उस जीव को सामायिक प्राप्त होती है।
(१६) कहाँ-सामायिक कहाँ-कहाँ होती है ? सम्यक्त्व-सामायिक और श्रुत-सामायिक की प्राप्ति तीनो लोकखण्डो-ऊर्ध्व, अध और तिर्यग्लोक मे होती है। देशविरति सामायिक की प्राप्ति केवल तिर्यग्लोक मे होती है। सर्वविरति सामायिक की प्राप्ति तिर्यग्लोक के एक भाग-मनुष्यलोक मे होती है।
(१७) किसमें-सामायिक किस-किस मे होती है ? नैगमनय के अनुसार सामायिक केवल मनोज्ञ द्रव्यों में ही सम्भव है। क्योंकि वे मनोज्ञ परिणाम के कारण बनते है। शेष नयो के अनुसार सब द्रव्यो मे सामायिक सम्भव है।
(१८) कैसे-जीव सामायिक कैसे प्राप्त करता है ? मनुष्यत्व, आर्यक्षेत्र, जाति, कुल, रूप, आरोग्य, व आयुष्य, बुद्धि, धर्मश्रवण, धर्मावधारण, श्रद्धा और सयम, इन लोकदुर्लभ बारह स्थानो की प्राप्ति होने
पर जीव सामायिक को प्राप्त करता है। अथवा श्रुत-सामायिक की प्राप्ति मतिज्ञानावरण, श्रुतज्ञानावरण तथा दर्शनमोह के क्षयोपशम से होती है। सम्यक्त्व-सामायिक की प्राप्ति दर्शन सप्तक के क्षयोपशम, उपशम और क्षय से होती है। देशविरति-सामायिक की प्राप्ति अप्रत्याख्यानावरण के क्षय, क्षयोपशम व उपशम से होती है। सर्वविरति-सामायिक की प्राप्ति प्रत्याख्यानावरण के क्षय, क्षयोपशम व उपशम से होती है।
अनुगमद्वार
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Anugam Dvar (Approach of Interpretation)
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