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परिशिष्ट १
आठ प्रकार का पुद्गल परावर्तन
(सूत्र ५३२ के विवेचन का स्पष्टीकरण) १/१. बादर द्रव्य पुद्गलपरावर्तन-सर्वलोक में रहने वाले सर्वपरमाणुओं को एक जीव औदारिक आदि सातों ही वर्गणाओं के पुद्गलों को ग्रहण कर जितने समय में छोड़े उतने समय को बादर द्रव्य पुद्गल परावर्तन कहते हैं। ___२/२. सूक्ष्म द्रव्य पुद्गलपरावर्तन-ऊपर कथित सातों ही वर्गणाओं का एक जीव अनुक्रम से स्पर्श कर परित्याग करता है।
लोक में जितने भी औदारिक वर्गणा के पुद्गल हैं सबसे पहले जीव उनका स्पर्श करता है। औदारिक वर्गणा के पुद्गलों का स्पर्श करते समय बीच में अन्य वर्गणाओं के पुद्गलों का स्पर्श होता है उनकी गणना नहीं की जाती है। औदारिक वर्गणा के सारे पुद्गलो का स्पर्श करने के बाद वैक्रिय शरीर की सारी वर्गणाओं का स्पर्श करता है। सातों वर्गणाओं को इस क्रम से स्पर्श करने में जितना समय लगता है उसे सूक्ष्म द्रव्य पुद्गलपरावर्तन कहा जाता है। ____३/१. बादर क्षेत्र पुद्गलपरावर्तन-मेरु पर्वत से आरम्भ होकर अलोक तक आकाशप्रदेशों की असंख्यात श्रेणियाँ समस्त दिशाओं और विदिशाओ में फैली हुई हैं। उनव सब आकाश प्रदेशो को एक जीव जन्म और मृत्यु से स्पर्श करता है। बाल के अग्र भाग जितना स्थान भी नहीं छोड़ता, उसे बादर क्षेत्र पुद्गलपरावर्तन कहते हैं।
४/२. सूक्ष्म क्षेत्र पुद्गलपरावर्तन-मेरु पर्वत से लेकर अलोक तक आकाश प्रदेशो की असंख्यात श्रेणियाँ निकली हुई हैं। उनमें से प्रत्येक श्रेणी पर अनुक्रम से जन्म-मरण करते-करते लोक के अन्त यानी अलोक तक बीच के एक भी प्रदेश को छोडे बिना सब प्रदेशों का स्पर्श करे। एक के बाद उससे लगी हुई दूसरी श्रेणी पर, तत्पश्चात् तीसरी श्रेणी पर और फिर चौथी श्रेणी पर, इस प्रकार असख्यात आकाश श्रेणियो मे अनुक्रम से जन्म-मरण करके स्पर्श करे। तब सूक्ष्म क्षेत्र पुद्गलपरावर्तन होता है। एक श्रेणी का स्पर्श करते-करते और अनुक्रम से उसे पूरा करने से पहले अगर अन्य श्रेणी का स्पर्श करे या उसी श्रेणी के आगे-पीछे का स्पर्श करे तो वह श्रेणी गिनती में नहीं आती। अन्य श्रेणी का स्पर्श व्यर्थ समझना चाहिए। श्रेणी का स्पर्श करना तभी सार्थक है जब मेरु से आरम्भ करके अनुक्रम से सब आकाश प्रदेशों को लोक के अन्त तक स्पर्श करें। __५/१. बादर काल पुद्गलपरावर्तन-समय, आवलिका (असंख्य समय), श्वासोच्छ्वास, स्तोक, लव, मुहूर्त, अहोरात्र पक्ष, मास, ऋतु, अयन, सवत्सर, युग, पूर्व (सत्तर लाख छप्पन हजार वर्ष), पल्य, सागर, अवसर्पिणीकाल, उत्सर्पिणीकाल, कालचक्र-इन सब कालों को जन्म-मरण के द्वारा स्पर्श करने पर बादर काल पुद्गलपरावर्तन होता है।
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