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६/२. सूक्ष्म काल पुद्गलपरावर्तन समय से लेकर कालचक्र पर्यन्त अनुक्रम से जन्म-मरण करके स्पर्श करे। जैसे पहले अवसर्पिणी काल लगे तो उसके पहले समय में जन्म लेकर मरे। फिर दूसरी बार जब अवसर्पिणी काल लगे तो उसके दूसरे समय में जन्म लेकर मरे। इस प्रकार करते-करते जब आवलिका का काल पूरा हो तब तक ऐसा करें। उसके बाद जो अवसर्पिणी काल आये तब उसकी पहली आवलिका में जन्म लेकर मरे, इस तरह समय के अनुसार स्तोक पूरा होने तक आवलिका में अनुक्रम से जन्म ले और मरे । इसी प्रकार स्तोक, लव आदि सब कालों में अनुक्रम से जन्म-मरण करके स्पर्श करे तब काल से सूक्ष्म पुद्गलपरावर्तन होता है।
७/१. बादर भाव पुद्गलपरावर्तन - पाँच वर्ण (काला, पीला, नीला, लाल और श्वेत) दो गन्ध, पाँच रस, आठ स्पर्श- इन बीस प्रकार के समस्त पुद्गलों का जन्म-मरण करके स्पर्श करे तो भाव से बादर पुद्गलपरावर्तन होता है।
८/२. सूक्ष्म भाव पुद्गलपरावर्तन-लोक में जितने भी काले वर्ण के पुद्गल है उन सबका अनुक्रम से जन्म-मरण करके स्पर्श करे। जैसे पहले एक गुण काले पुद्गल का स्पर्श करे, फिर दो गुण काले पुद्गल का स्पर्श करे, इस प्रकार अनन्त गुण काले पुद्गल का स्पर्श करे, काले वर्ण के पुद्गल का स्पर्श करते-करते यदि बीच में अन्य वर्ण (पीला, नीला आदि) वाले पुद्गल का स्पर्श करे तो उनकी स्पर्शना गिनती में नहीं गिनी जाती। जहाँ तक स्पर्शना हुई थी वहाँ से आगे स्पर्शना करने पर वह गिनती आती है। इस प्रकार अनुक्रम से वर्ण, गंध, रस और स्पर्श के २० प्रकारों का आरम्भ से अन्त तक स्पर्शना करने पर भाव से सूक्ष्म पुद्गलपरावर्तन कहलाता है।
उपर्युक्त आठ प्रकार के परावर्तन करने पर एक पुद्गलपरावर्तन होता है। यह पुद्गलपरावर्तन अनन्त उत्सर्पिणी और अनन्त अवसर्पिणी काल के बराबर है। (अनु. आचार्य महाप्रज्ञ जी सूत्र ६१६ का टिप्पण - पृष्ठ ३४७-३४८)
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