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परिशिष्ट २
अनध्याय काल (स्व. आचार्यप्रवर श्री आत्माराम जी म. द्वारा सम्पादित नन्दीसूत्र से उद्धृत) ___ स्वाध्याय के लिए आगमों में जो समय बताया गया है, उसी समय शास्त्रों का स्वाध्याय करना चाहिए। अनध्याय काल मे स्वाध्याय वर्जित है।
मनुस्मृति आदि स्मृतियो में भी अनध्याय काल का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। वैदिक लोग भी वेद के अनध्यायो का उल्लेख करते हैं। इसी प्रकार अन्य आर्ष ग्रन्थों का भी अनध्याय माना जाता है। जैनागम भी सर्वज्ञोक्त, देवाधिष्ठित तथा स्वरविद्या संयुक्त होने के कारण, इनका भी आगमों मे अनध्याय काल वर्णित किया गया है। जैसे____दसविधे अंतलिखिते असल्झाए पण्णत्ते, तं जहा-उक्कावाते, दिसिदाघे, गजिते, विजुते, निग्याते,
जुवते, जक्खालित्ते, धूमिता, महिता, रयउग्घाते। ____दसविहे ओरालिते असल्झातिते, तं जहा-अट्ठी, मंसं, सोणिते, असुतिसामंते, सुसाणसामंते, चंदोवराते, सूरोवराते, पडने, रायबुग्गहे, उवस्मयस्स अंतो ओरालिए सरीरगे।
-स्थानांगसूत्र, स्थान १० नो कप्पति निग्गंथाण वा, निग्गंथीण वा चउहि महापाडिवएहिं सज्झायं करित्तए, तं जहाआसाढपाडिवए, इंदमहपाडिवए, कत्तिअपाडिवाए सुगिम्हपाडिवए। नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा, चउहि संझाहिं सज्झायं करेत्तए, तं जहा-पडिमाते, पच्छिमाते, मज्झण्हे, अड्ढरते। कप्पइ निग्गंथाणं वा निग्गंथीण वा चाउक्कालं सज्झायं करेत्तए, तं जहा-पुवण्हे अवरण्हे, पओसे, पच्चूसे।
-स्थानांगसूत्र, स्थान ४, उद्देश २ स्थानांगसूत्र के अनुसार, दस आकाश से सम्बन्धित, दस औदारिक शरीर से सम्बन्धित, चार महाप्रतिपदा, चार महाप्रतिपदा की पूर्णिमा और चार सन्ध्या; इस प्रकार बत्तीस अनध्याय काल माने गए हैं, जिनका संक्षेप में निम्न प्रकार से वर्णन है। जैसेआकाश-सम्बन्धी दस अनध्याय
१. उल्कापात-तारापतन-यदि महत् तारापतन हुआ है तो एक प्रहर पर्यन्त शास्त्र-स्वाध्याय नहीं करना चाहिए।
२. दिग्दाह-जब तक दिशा रक्तवर्ण की हो अर्थात् ऐसा मालूम पडे कि दिशा में आग-सी लगी है, तब भी स्वाध्याय नही करना चाहिए।
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