Book Title: Agam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Aryarakshit, Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
Publisher: Padma Prakashan

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Page 549
________________ ___ ज्ञाननय-ज्ञाननय का मतव्य है कि ज्ञान के बिना किसी कार्य की सिद्धि नहीं होती है। ज्ञानी पुरुष ही मोक्ष के फल का अनुभव करते हैं। अन्धा पुरुष अन्धे के पीछे-पीछे गमन करने से वांछित लक्ष्य को प्राप्त नही कर सकता है। ज्ञान के बिना पुरुषार्थ की सिद्धि नहीं होती है। सभी व्रतादि एवं क्षायिक सम्यक्त्व आदि अमूल्य पदार्थों की प्राप्ति ज्ञान से होती है। अतएव सबका मूल कारण ज्ञान है। क्रियानय-क्रियानय का कथन है कि सिद्धि प्राप्त करने का मुख्य कारण क्रिया ही है। हेय, उपादेय और ज्ञेय का ज्ञान करके क्रिया करनी चाहिए। इस कथन से क्रिया की ही सिद्धि होती है। इसलिए क्रिया मुख्य और ज्ञान गौण है। मात्र ज्ञान से जीव सुख नहीं पाते। तीर्थंकर देव भी अन्तिम समय पर्यन्त क्रिया के ही आश्रित रहते है। इसलिए सबका मुख्य कारण क्रिया ही है। यह क्रिया का मंतव्य है। किन्तु किसी भी एकान्त पक्ष में मोक्ष-प्राप्ति का अभाव है। इसलिए अब मान्य पक्ष प्रस्तुत करते हैं सर्व नयो के नाना प्रकार के वक्तव्यों को सुनकर-नयों के परस्पर विरोधी भावों को सुनकर जो साधु ज्ञान और क्रिया में स्थित है वही मोक्ष का साधक होता है। केवल ज्ञान और केवल क्रिया से कार्यसिद्धि नहीं होती है। जैसे क्रिया से रहित ज्ञान निष्फल है वैसे ही ज्ञान से रहित क्रिया भी * कार्यसाधक नहीं है। यथा-पंगु और अंधे भागते हुए भी सुमार्ग को प्राप्त नहीं होते, इसी प्रकार अकेले ज्ञान और अकेली क्रिया से सिद्धि नहीं होती, अपितु दोनों के समुचित समन्वय से सिद्धि प्राप्त होती है। लिपिकार का वक्तव्य-अनुयोगद्वारसूत्र की कुल मिलाकर सोलह सौ चार (१,६०४) गाथाएँ हैं तथा दो हजार (२,०००) अनुष्टुप छन्दों का परिमाण है॥७॥ जैसे महानगर में प्रवेश करने के लिए मुख्य चार द्वार हैं उसी प्रकार अनुयोगद्वार के उपक्रम, निक्षेप, अनुगम और नय ये चार द्वार हैं। इस सूत्र में अक्षर, बिन्दु और मात्राएँ जो लिखी गई हैं, वे सब जन्म-मरण के दुःखों का क्षय करने के लिए हैं ॥८॥ ॥ अनुयोगदारसूत्र समाप्त ॥ * BENEFITS OF NAYAS (b) One should acquire the knowledge of the acceptable and non-acceptable with the help of these nayas and then acte accordingly. It is this teaching that is called (Jnana) naya (view point of knowledge). (5) Having listened to the manifold explication of all nayas, one who establishes himself in righteousness and conduct (also knowledge) that are pure from all angles (nayas) can become a true a ascetic (aspirant of liberation). (6) This concludes the description of Naya (viewpoint). This to the concludes Anuyogadvar Sutra. सचित्र अनुयोगद्वार सूत्र-२ (476) Illustrated Anuyogadvar Sutra-2 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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