Book Title: Agam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Aryarakshit, Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
Publisher: Padma Prakashan

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Page 548
________________ Another elaboration of nayas has already been given in aphorismo 474-476 with examples like Prasthak. For more details refer to Tika of Anuyogadvar Sutra by Shri Jnana Muni, p. 946-990. नयवर्णन के लाभ (ब) णयम्मि गिहियब्वे अगिहियबम्मि चेव अथम्मि। जइयव्वमेव इइ जो उवएसो सो नओ नाम॥५॥ सवेसि पि नयाणं बहुविहवत्तव्वयं निसामेत्ता। तं सवनयविसुद्धं जं चरणगुणट्ठिओ साहू॥६॥ से तं नये। सोलससयाणि चउरुत्तराणि गाहाण जाण सबगं। दुसहस्समणुठ्ठभछंदवित्तपरिमाणओ भणियं ॥७॥ नगरमहादारा इव कम्मदाराणुओगवरदारा। अक्खर-बिन्दू-मत्ता लिहिया दुक्खक्खयट्ठाए॥८॥ ॥ अनुयोगद्वारसूत्रम् सम्मत्तं ॥ (ब) इन नयों द्वारा हेय और उपादेय अर्थ का ज्ञान प्राप्त करके तदनुकूल प्रवृत्ति करनी चाहिए। यह जो उपदेश है वही (ज्ञान) नय कहलाता है॥५॥ ___ इन सभी नयों की अनेक प्रकार की वक्तव्यता को सुनकर समस्त नयों से विशुद्ध सम्यक्त्व, चारित्र (और ज्ञान) गुण में स्थित होने वाला साधु (मोक्षसाधक हो सकता) है॥६॥ ___ इस प्रकार नय-अधिकार की प्ररूपणा जानना चाहिए। साथ ही अनुयोगद्वारसूत्र का वर्णन समाप्त होता है। विवेचन-उपर्युक्त दो गाथाओं में नयवर्णन से प्राप्त लाभ का उल्लेख है। "जितने वचनमार्ग हैं, उतने ही नय हैं' इस सिद्धान्त के अनुसार नयों के अनेक भेद हैं, जैसेनैगम, संग्रह आदि सात भेद, अर्थनय एवं शब्दनय, द्रव्यार्थिक-पर्यायार्थिक, ज्ञान-क्रिया, निश्चय-व्यवहार आदि भेद। पदार्थों में जो उपादेय हों उन्हें ग्रहण करना और जो हेय हों उनका त्याग करना तथा ज्ञेय (जानने योग्य) हों उन्हें मध्यस्थ भाव से जानना चाहिए। नयद्वार (476) Naya Dvar (Approach of Viewpoints) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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