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४.नयद्वार 4. NAYA DVAR (APPROACH OF VIEWPOINTS)
नयनिरूपण की भूमिका
६०६. (अ) से किं तं णए ? सत्त मूलणया पण्णत्ता। तं जहा-णेगमे संगहे ववहारे उज्जुसुए सद्दे समभिरूढे एवंभूते। तत्थ गाहा
१. णेगेहिं माणेहिं मिणइ त्ति णेगमस्स य निरुत्ती।
सेसाणं पि नयाणं लक्खणमिणमो सुणह वोच्छं ॥१॥ २. संगहियपिडियत्थं संगहवयणं समासओ बिंति। ३. वच्चइ विणिच्छियत्थं ववहारो सबदब्बेसुं॥२॥ ४. पच्चुप्पन्नग्गाही उज्जुसुओ णयविही मुणेयव्वो। ५. इच्छइ विसेसियतरं पच्चुप्पण्णो णओ सद्दो॥३॥ ६. वत्थूओ संकमणं होइ अवत्थु णये समभिरूढे।
७. वंजण-अत्थ-तदुभयं एवंभूओ विसेसेइ॥४॥ ६०६. (अ) (प्र.) नय क्या है?
(उ.) मूल नय सात हैं। वे इस प्रकार हैं-(१) नैगमनय, (२) संग्रहनय, (३) व्यवहारनय, (४) ऋजुसूत्रनय, (५) शब्दनय, (६) समभिरूढ़नय, और (७) एवंभूतनय।
नैगम आदि सात नयों के लक्षण-जो अनेक प्रमाण से वस्तु के स्वरूप को जानता है, या अनेक प्रकार से वस्तु-स्वरूप का निर्णय करता है (वह नैगमनय है)। यह नैगमनय की निरुक्ति-व्युत्पत्ति है। शेष नयों के लक्षण कहूँगा, जिनको तुम सुनो॥१॥ ___ सम्यक् प्रकार से गृहीत और पिंडित (एकत्रित) अर्थ को जो संक्षेप में बताता है, वह संग्रहनय का वचन है। व्यवहारनय सर्वद्रव्यों के विषय में निश्चय (विशेष-भेद रूप में निश्चय) करने के निमित्त प्रवृत्त होता है॥२॥
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नयद्वार
(471)
Naya Dvar (Approach of Viewpoints)
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