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(३) पदार्थ - प्रत्येक पद का अर्थ करना । जैसे - करेमि = करता हूँ, इस क्रियापद से सामायिक करने की उन्मुखता का बोध होता है, 'भंते ! भगवन् । यह पद गुरुजनो को आमंत्रित करने के अर्थ का बोध है।
(४) पदविग्रह– संयुक्त पदों का विभाग रूप विस्तार करना और अनेक पदों का एक पद समा करना है ।
(५) चालना - प्रश्नोत्तरों द्वारा सूत्र और अर्थ को स्पष्ट करना ।
(६) प्रसिद्धि - सूत्र और उसके अर्थ की विविध युक्तियों द्वारा स्थापना करना प्रसिद्धि है ।
व्याख्या के इन षड्विध लक्षणों मे से सूत्रोच्चारण और पदच्छेद करना सूत्रानुगम का कार्य है । सूत्रानुगम द्वारा यह कार्य किये जाने के बाद सूत्रालापकनिक्षेप - सूत्रालापकों को नाम, स्थापना आदि निक्षेपों में निक्षिप्त करता है, अर्थात् सूत्रालापकों को नाम - स्थापना निक्षेपों में सूत्रालापकनिक्षेप विभक्त करता है । पदविग्रह, चालना और प्रसिद्धि यह सब सूत्रस्पर्शिकनिर्युक्ति के विषय हैं। इस प्रकार जब सूत्र व्याख्या का विषयभूत बनता है, तब सूत्र, सूत्रानुगम, सूत्रालापकनिक्षेप और सूत्र स्पर्शिक नियुक्त्यनुगम ये सब एक जगह मिल जाते है ।
स्वसमयपद - स्वसिद्धान्तसम्मत जीवादिक पदार्थ प्रतिपादक-बोधक पद ।
परसमयपद - परसिद्धान्तसम्मत प्रकृति, ईश्वर आदि का प्रतिपादन करने वाला पद ।
बंधपद-परसमय सिद्धान्त के मिध्यात्व का प्रतिपादक पद । क्योंकि वह कर्मबध एवं कुवासना का हेतु होने से बंधपद कहलाता है।
मोक्षपद - प्राणियो के सद्बोध का कारण होने से तथा समस्त कर्मक्षय रूप का प्रतिपादक होने से स्वसमय मोक्षपद कहलाता है। अथवा
प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेश के भेद से चार प्रकार के बंध का प्रतिपादन करने वाला पद बंधपद तथा कृत्स्न कर्मक्षयरूप मोक्ष का प्रतिपादकपद मोक्षपद कहलाता है।
|| अनुगमद्वार समाप्त ॥
SUTRASPARSH NIRYUKTANUGAM
605. (Q.) What is this Sutrasparsh Nuryuktanugam (contextual elaboration embracing the sutra)?
(Ans.) Sutrasparsh Niryuktanugam (contextual elaboration embracing each and every component of the sutra under consideration) is made as follows - In this Anugam ( elaboration ) the recitation should be without skipping syllables (askhalit); without mixing up of different phrases (amilit); without combining different phrases and aphorisms (avyatyamredit) and rendered
सचित्र अनुयोगद्वार सूत्र - २
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Illustrated Anuyogadvar Sutra-2
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