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४७६. (प्र.) प्रदेशदृष्टान्त द्वारा प्रतिपादित नयों का स्वरूप क्या है? (उ.) प्रदेशों के दृष्टान्त द्वारा नयों का स्वरूप इस प्रकार है
नैगमनय कहता है-“छह द्रव्यों के प्रदेश होते हैं, जैसे-(१) धर्मास्तिकाय का प्रदेश. (२) अधर्मास्तिकाय का प्रदेश, (३) आकाशास्तिकाय का प्रदेश, (४) जीवास्तिकाय का प्रदेश, (५) स्कन्ध का प्रदेश, और (६) देश का प्रदेश।"
ऐसा कहने पर नैगमनय से संग्रहनय कहता है- “जो तुम कहते हो कि 'छहों के प्रदेश हैं', वह उचित नहीं है।'
“क्यों (नहीं है)?" “इसलिए कि जो देश का प्रदेश है, वह उसी द्रव्य का है (उससे भिन्न नहीं है)।" । "इसके लिए कोई दृष्टान्त है?'
"हॉ, दृष्टान्त है। जैसे मेरे दास ने गधा खरीदा और दास मेरा है और गधा भी मेरा र है। इसलिए यह मत कहो कि 'छहो के प्रदेश हैं', यह कहो कि ‘पाँचों का प्रदेश है।' यथा
(१) धर्मास्तिकाय का प्रदेश, (२) अधर्मास्तिकाय का प्रदेश, (३) आकाशास्तिकाय का प्रदेश, (४) जीवास्तिकाय का प्रदेश, और (५) स्कन्ध का प्रदेश।" । ___ संग्रहनय के ऐसा कहने पर व्यवहारनय ने कहा-“तुम कहते हो कि पाँचों के प्रदेश हैं, वह उचित नहीं है।" ___“क्यों नहीं है?" में प्रत्युत्तर में व्यवहारनय ने कहा-“जैसे पाँच गोष्ठिक पुरुषों (मित्रों या भागीदारों) का
कोई द्रव्य सामान्य (सबके अधिकार का) है-हिरण्य, स्वर्ण, धन, धान्य आदि (वैसे ही पाँचों के प्रदेश सामान्य होते) तो तुम्हारा कहना उचित था कि पाँचों के प्रदेश हैं। (परन्तु ऐसा है नहीं) इसलिए ऐसा मत कहो कि 'पाँचों के प्रदेश हैं', किन्तु कहो-'प्रदेश पाँच प्रकार का है', जैसे-(१) धर्मास्तिकाय का प्रदेश, (२) अधर्मास्तिकाय का प्रदेश, (३) आकाशास्तिकाय का प्रदेश, (४) जीवास्तिकाय का प्रदेश, और (५) स्कन्ध का प्रदेश।" ___ व्यवहारनय के ऐसा कहने पर ऋजुसूत्रनय कहता है- "तुम भी जो कहते हो कि 'पाँच प्रकार के प्रदेश हैं', वह उचित नहीं है।'
"क्यों नहीं है?"
नयप्रमाण-प्रकरण
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The Discussion on Naya Pramana
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