Book Title: Agam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Aryarakshit, Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
Publisher: Padma Prakashan

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Page 426
________________ ( उ ) परिमाणसंख्या दो प्रकार की है, जैसे - ( 9 ) कालिक श्रुतपरिमाणसंख्या, और (२) दृष्टिवादश्रुतपरिमाणसंख्या । (5) PARIMAAN SAMKHYA 493. (Q.) What is this Parumaan samkhya (samkhya as measure or extent) ? (Ans.) Parimaan samkhya (samkhya or number as measure or extent) is of two kinds (1) Kalik Shrut Parimaan samkhya (number as measure of the scriptures studied at specific time), and (2) Drishtivad Shrut Parimaan samkhya (number as measure of the corpus of scriptures called Drishtivad). कालिक श्रुतपरिमाणसंख्या ४९४. से किं तं कालियसुयपरिमाणसंखा ? कांलियसुयपरिमाणसंखा अणेगविहा पण्णत्ता । तं जहा - पज्जवसंखा अक्खरसंखा संघायसंखा पदसंखा पादसंखा गाहासंखा सिलोगसंखा वेढसंखा निज्जुत्तिसंखा अणुओगदारसंखा उद्देसगसंखा अज्झयणसंखा सुयखंधसंखा अंगसंखा से तं कालियसुयपरिमाणसंखा | ४९४ . ( प्र . ) कालिक श्रुतपरिमाणसंख्या क्या है ? (उ.) कालिकश्रुतपरिमाणसंख्या अनेक प्रकार की है। यथा- - (१) पर्यव (पर्याय) संख्या, (२) अक्षरसंख्या, (३) संघातसख्या, (४) पदसंख्या, (५) पादसंख्या, (६) गाथासंख्या, (७) श्लोकसंख्या, (८) वेढ (वेष्टक) संख्या, (९) निर्युक्तिसंख्या, (१०) अनुयोगद्वारसंख्या, (११) उद्देशसंख्या, (१२) अध्ययनसंख्या, (१३) श्रुतस्कन्धसंख्या, और (१४) अंगसंख्या आदि । ये कालिक श्रुतपरिमाणसंख्या हैं। विवेचन - जिस श्रुत का रात व दिन के प्रथम और अन्तिम प्रहर मे स्वाध्याय किया जाता है उसे कालिक श्रुत कहते है । जैसे- उत्तराध्ययनसूत्र, दशाश्रुतस्कन्धकल्प (बृहत्कल्प), व्यवहारसूत्र, निशीथसूत्र आदि (कालिकत के विशेष वर्णन के लिए देखिए नन्दीसूत्र, सूत्र ८१ ) जिसके द्वारा इनके श्लोक आदि के परिमाण का विचार किया जाता है, उसे कालिक श्रुतपरिमाणसख्या कहते हैं। विशेष शब्दों के अर्थ - (१) पर्यव, पर्याय अथवा धर्म और उसकी सख्या को पर्यवसख्या कहते है । प्रत्येक अक्षर के अनन्त पर्याय होते है । (२) अकार आदि अक्षरो की संख्या - गणना अक्षरसंख्या है। अक्षरों की संख्या ६४ है । (३) दो-तीन आदि अक्षरो के सयोग को सघात कहा जाता है। संख्याप्रमाण- प्रकरण Jain Education International (359) For Private The Discussion on Samkhya Pramana Personal Use Only www.jainelibrary.org

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