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४९५. (प्र.) दृष्टिवादश्रुतपरिमाणसंख्या क्या है ?
(उ.) दृष्टिवादश्रुतपरिमाणसंख्या के अनेक प्रकार हैं। यथा- पर्यवसंख्या यावत् अनुयोगद्वारसंख्या प्राभृतसंख्या, प्राभृतिकासंख्या, प्राभृत-प्राभृतिकासंख्या, वस्तुसंख्या और पूर्वसंख्या ।
यह दृष्टिवादश्रुतपरिमाणसंख्या का स्वरूप है। यही परिमाणसंख्या का निरूपण है। विवेचन- जिसमे पर्यवसख्या से लेकर अनुयोगद्वारसंख्या तक के नाम तो कालिकश्रुतपरिमाणसंख्या अनुरूप है और शेष प्राभृत आदि अधिक नामो का कथन सूत्र ४९५ के अनुसार है। ये प्राभृत आदि सब पूर्वान्तर्गत श्रुताधिकार है।
प्राभृत-वस्तु का एक अध्याय ।
प्राभृतिका - अध्याय का एक प्रकरण ।
प्राभृत- प्राभृतिका - अध्याय का अवान्तर प्रकरण ।
वस्तु - अनेक प्राभृतों का समुदाय ।
पूर्व-दृष्टिवादश्रुत का एक स्वतंत्र विभाग जिसमे विषयविशेष की चर्चा हो ।
DRISHTIVAD SHRUT PARIMAAN SAMKHYA
495. (Q.) What is this Drishtvad Shrut Parimaan samkhya (number as measure of the corpus of scriptures called Drishtivad)?
(Ans.) Drishtivad Shrut Parimaan samkhya (number as measure of the corpus of scriptures called Drishtivad) is of many kinds-Paryav or Prayaya samkhya, (and so on up to) Anuyogadvar samkhya, Prabhrit samkhya, Prabhritika samkhya, Prabhritprabhritika samkhya, Vastu samkhya and Purva samkhya.
This concludes the description of Drishtivad Shrut Parimaan samkhya (number as measure of the corpus of scriptures called Drishtivad). This also concludes the description of Parimaan samkhya (samkhya as measure or extent).
Elaboration-Here the first ten terms are same as the preceding aphorism The following terms that are names of portions exclusively of Purvas (subtle canon) are explained as follows
Prabhrit-one chapter of a Vastu.
Prabhritika-one section of a chapter.
सचित्र अनुयोगद्वार सूत्र - २
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Illustrated Anuyogadvar Sutra-2
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