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PREPARASAMAYA VAKTAVYATA
523. (Q.) What is this Parasamaya väktavyata (explication of doctrine of others)? ___(Ans.) To state (akhyan), (and so on up to...) propound (upadarshan) doctrine of others is Parasamaya vaktavyata (explication of doctrine of others).
This concludes the description of Parasamaya vaktavyata (explication of doctrine of others). ससमय-परसमयवक्तव्यता
५२४. से किं तं ससमय-परसमयवत्तव्वया ?
ससमय-परसमयवत्तव्वा जत्थ णं ससमए-परसमए आपविज्जइ जाव उवदंसिज्जइ।
से तं ससमय-परसमयक्त्तव्वया। * ५२४. (प्र.) स्वसमय-परसमयवक्तव्यता क्या है ?
(उ.) जिस वक्तव्यता में स्वसिद्धान्त और परसिद्धान्त दोनों का कथन यावत् विवेचन किया जाता है, उसे स्वसमय-परसमयवक्तव्यता कहते हैं।
विवेचन-एक विषय की प्ररूपणा तथा आगमसम्मत नियत अर्थ का प्रतिपादन करना 'वक्तव्यता' है।
(१) स्वसमयवक्तव्यता-अपने सिद्धान्त का प्रतिपादन करना स्वसमयवक्तव्यता है। जैसे-अस्तिकाय पाँच हैं-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय आदि। धर्मास्तिकाय गति सहायक द्रव्य है। आदि स्व-सिद्धान्त कथन करना। (२) परसमयवक्तव्यता-अन्यतीर्थिकों के सिद्धान्त का प्रतिपादन परसमयवक्तव्यता है। जैसे“संति पंच महत्भूया, इहमेगेसिं आहिया।"
-सूत्रकृताग लोकायतिकों (नास्तिको) के मतानुसार पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश ये सर्वलोकव्यापी पच महाभूत हैं। यह पर-सिद्धान्त का कथन है।
(३) उभयसमयवक्तव्यता-अपने तथा अन्यतीर्थिक दोनों के सिद्धान्त का प्रतिपादन करनाउभयसमय (स्वसमय, परसमय-वक्तव्यता है, जैसे
"अगारमावसंता वि, आरण्णा वा वि पचया।
इमं दरिसणमावण्णा, सबदुक्खा विमुच्चंति॥" -सूत्रकृताग १/१/१९ “कोई व्यक्ति गृहस्थ हो, तापस हो अथवा प्रव्रजित शाक्य आदि हो, हमारे दर्शन का आश्रय लेकर वह सब दुःखों से मुक्त हो जाता है।"
वक्तव्यता-प्रकरण
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The Discussion on Vaktavyata
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