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545. (Q.) What is this Agamatah bhaava adhyayan (perfectadhyayan with scriptural knowledge) ? ___ (Ans.) One who knows adhyayan (chapter/concentration of
mind) and is sincerely involved with it is called Agamatah bhaava Son adhyayan (perfect-adhyayan with scriptural knowledge).
५४६. से किं तं नोआगमतो भावज्झयणे ? नोआगमतो भावज्झयणे
अज्झप्पस्साऽऽणयणं, कम्माणं अवचओ उवचियाणं।
अणुवचओ य नवाणं, तम्हा अज्झयणमिच्छंति॥१॥ से तं णोआगमतो भावज्झयणे। से तं भावल्झयणे। से तं अज्झयणे। ५४६. (प्र.) नोआगमतःभाव-अध्ययन क्या है ? (उ.) नोआगमतःभाव-अध्ययन इस प्रकार है
अध्यात्म में आने-सामायिक आदि अध्ययन में चित्त को लगाने, उपार्जित पूर्वबद्ध * कर्मों का क्षय करने, निर्जरा करने और नवीन कर्मों का बंध नहीं होने देने का कारण होने * से (मुमुक्षु महापुरुष) अध्ययन की अभिलाषा करते हैं ॥१॥
__यह नोआगमतःभाव-अध्ययन का स्वरूप है। भाव-अध्ययन और अध्ययन का वर्णन पूर्ण हुआ।
विवेचन-'अज्झप्पस्साऽऽणयणं' पद की संस्कृत छाया-अध्यात्ममानयनं-"अध्यात्मम्-आनयनम्' है। * इसमें अध्यात्म का अर्थ है चित्त और आनयन का अर्थ है लगाना। तात्पर्य यह हुआ कि सामायिक आदि * में चित्त का लगाना अध्यात्ममानयन कहा जाता है और इसका फल है-कम्माणं अवचओं"। अर्थात्
सामायिक आदि में चित्त की निर्मलता होने के कारण कर्मनिर्जरा होती है, नवीन कर्मों का आस्रव-बध नहीं होता है। अध्ययन का यही अर्थ है।
546. (Q.) What is this No-agamatah bhaava adhyayan (perfectadhyayan without scriptural knowledge) ? ____(Ans.) No-agamatah bhaava adhyayan (perfect-adhyayan without scriptural knowledge) is explained as follows
Adhyayan (chapter/concentration of mind) is instrumental in embracing spiritualism (through concentrating on chapters like
Samayık), eradication or shedding of acquired and bonded karmasi ___ सचित्र अनुयोगद्वार सूत्र-२
(420)
Illustrated Anuyogadvar Sutra-9
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