Book Title: Agam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Aryarakshit, Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
Publisher: Padma Prakashan

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Page 526
________________ OTHER DETAILS (d) Only he is a shraman who has purity of attitude and is not evil even in his thoughts, who is evenly disposed in his behaviour with relatives (including parents) and unknown people as also equanimous in face of honour and insult. This concludes the description of No-agamatah bhaava samayık (perfect-samayık without scriptural knowledge). This also concludes the description of bhaava samayik (perfect-samayik). This concludes the description of Samayik (equanimity) as well as Naam nishpanna nikshep (attribution pertaining to specific name). (३) सूत्रालापकनिष्पन्न निक्षेप ६००. से किं तं सुत्तालावगनिष्फण्णे ? __सुत्तालावगनिष्फण्णे इदाणिं सुत्तालावगनिष्फण्णे निक्खेवं इच्छावेइ, से य पत्तलक्खणे वि ण णिक्खिप्पइ, कम्हा ? लाघवत्थं! इतो अत्थि ततिये अणुओगद्दारे अणुगमे त्ति, तहिं णं णिक्खित्ते इहं णिक्खित्ते भवति इहं वा णिक्खित्ते तहिं णिक्खित्ते भवति, तम्हा इहं ण णिक्खिप्पइ तहिं चेव णिक्खिप्पिस्सइ। से तं निक्खेवे। ॥ द्वितीय निक्षेपद्वार सम्मत्तं ॥ ६००. (प्र.) सूत्रालापकनिष्पन्ननिक्षेप क्या है ? (उ.) इस समय सूत्रालापकनिष्पन्ननिक्षेप की प्ररूपणा करने की इच्छा है और अवसर भी प्राप्त है किन्तु आगे अनुगम नामक तीसरे अनुयोगद्वार में इसी का वर्णन किये जाने से लाघव (ग्रन्थ संक्षेप) की दृष्टि से अभी निक्षेप नहीं करते हैं, क्योंकि पाठ का विस्तार न हो इस दृष्टि से, वहाँ पर निक्षेप करने से यहाँ निक्षेप हो गया और यहाँ निक्षेप किये जाने से वहाँ पर निक्षेप हुआ समझ लेना चाहिए। इसीलिए यहाँ निक्षेप नहीं करके वहाँ पर ही इसका निक्षेप किया जायेगा। यह निक्षेपप्ररूपणा का वर्णन है। द्वितीय निक्षेपद्वार समाप्त ॥ शनिक्षेपद्वार : निक्षेप-प्रकरण (453) Nikshep Dvar (Approach of Attribution) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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