Book Title: Agam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Aryarakshit, Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
Publisher: Padma Prakashan

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Page 519
________________ जस्स सामाणिओ अप्पा संजमे णियमे तवे। तस्स सामाइयं होइ, इइ केवलिभासियं ॥३॥ जो समो सबभूएसु, तसेसु थावरेसु य। तस्स सामाइयं होइ, इइ केवलिभासियं ॥४॥ ५९९. (अ) (प्र.) नोआगमतःभाव-सामायिक का क्या स्वरूप है? (उ.) जिसकी आत्मा संयम, नियम और तप में समाहित-लीन है (-जागरूक है), उसी को सामायिक होती है, ऐसा केवली भगवान का कथन है॥३॥ जो सर्व भूतों-त्रस, स्थावर आदि प्राणियों के प्रति समभाव धारण करता है, उसी को र सामायिक होती है, ऐसा केवली भगवान ने कहा है॥४॥ विवेचन-सामान्य रूप में समभाव की आराधना को सामायिक कहा जाता है। वह सामायिक दो 2 प्रकार का है-एक यावज्जीवन और दूसरा अन्तर्मुहूर्त का। यावज्जीवन सामायिक मुनियों का और अन्तर्मुहूर्त सामायिक गृहस्थ श्रावक का। प्रस्तुत सूत्र में नोआगमतःभाव-सामायिक का जो स्वरूप हैवह सामायिक कर्ता की उदात्त निर्मल चित्तवृत्तियों का परिचायक है। यहाँ सामायिक और सामायिक करने वाले को अभेद मानकर सामायिक का वर्णन किया गया है। यह वर्णन यावज्जीवन सामायिकधारी (श्रमण) से सम्बन्ध रखता है। ___इन दो गाथाओं में सामायिक का लक्षण एवं उसके अधिकारी का संकेत किया है। ___ संयम-मूलगुणों, नियम-उत्तरगुणों, तप-अनशन आदि तपों मे निरत एवं त्रस, स्थावररूप सभी जीवो पर समभाव का धारक सामायिक का अधिकारी है। जिसका फलितार्थ यह हुआ-संयम, नियम, तप, समभाव का समुदाय सामायिक है। यही समस्त जिनवाणी का सार है। 599. (a) (Q.) What is this No-agamatah bhaava samayik (perfect-samayik without scriptural knowledge) ? __ (Ans.) No-agamatah bhaava samayik (perfect-samayik without scriptural knowledge) is explained as follows Kevalı (omniscient) has said that Samayik is deemed to have manifested only in him who (whose soul) is engaged (with all awareness and sincerity) in self-restraint, self-regulation and austerities. (3) Kevali (omniscient) has said that Samayik is deemed to have manifested only in him who (whose soul) is equanimous (evenly disposed) towards all beings, mobile and immobile. (4) सचित्र अनुयोगद्वार सूत्र-२ (448) Illustrated Anuyogadvar Sutra Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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