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५५६. से किं तं आगमतो भावज्झीणे ? आगमतो भावज्झीणे जाणए उवउत्ते। से तं आगमतो भावज्झीणे। ५५६. (प्र.) आगम से भाव-अक्षीण क्या है ?
(उ.) जो ज्ञायक उपयोग से युक्त हो-जो जानता हो और उपयोग सहित हो वह आगम की अपेक्षा भाव-अक्षीण है।
यह आगमतः भाव-अक्षीण का वर्णन पूर्ण हुआ।
विवेचन-आगमतः भाव-अक्षीण के प्रसंग मे चूर्णिकार तथा वृत्तिकार ने कहा है-एक चतुर्दश पूर्व का ज्ञाता मुनि जो आगम ग्रन्थो के विषय मे एकाग्रचित्त है, वह अन्तर्मुहूर्त मात्र में असीम पर्यायों को जान लेता है। एक-एक समय मे एक-एक पर्याय का अपहार किया जाय तो अनन्त उत्सर्पिणी
और अनन्त अवसर्पिणी में भी उनका क्षय नहीं हो सकता। इसे आगमतः भाव-अक्षीण कहा जाता है। (चूर्णि, पृ. ८८)
556. (Q.) What is this Agamatah bhaava akshina (perfectakshina with scriptural knowledge) ? ___(Ans.) One who knows the Akshina (inexhaustible) and is sincerely involved with it is called Agamatah bhaava akshina (perfect-akshuna with scriptural knowledge). ___Elaboration-In this context the commentators (Vritti and Churni) state-An ascetic who has acquired the knowledge of Chaturdash Purva (the fourteen-part subtle canon) with absolute concentration knows about infinite transformations of things (paryayas) within one antarmuhurt (less than 48 minutes). If this information is erased at the rate of one paryaya (transformation) every Samaya it cannot be completely erased even in infinite time cycles. This is called Agamatah bhaava akshina (perfect akshina with scriptural knowledge). (Churni,
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p. 88)
५५७. से किं तं नोआगमतो भावज्झीणे ? नोआगमतो भावज्झीणे
जह दीवा दीवसतं पइप्पए, दिप्पए य सो दीवो।
दीवसमा आयरिया दिप्पंति, परं च दीति॥२॥ से तं नोआगमतो भावज्झीणे। से तं भावज्झीणे। से तं अज्झीणे। सचित्र अनुयोगद्वार सूत्र-२
(426)
Illustrated Anuyogadvar Sutra-2
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