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मध्यम संख्यात-जघन्य संख्यात-दो से ऊपर और उत्कृष्ट सख्यात से पूर्व तक की मध्यवर्ती सब सख्यायें मध्यम संख्यात हैं। इसके लिए कल्पना से मान लें कि १०० की सख्या उत्कृष्ट और २ की सख्या जघन्य संख्यात है तो २ और १०० के बीच ३ से लेकर ९९ तक की सभी सख्याएँ मध्यम सख्यात है।।
उत्कृष्ट संख्यात-दो से लेकर दहाई, सैकडा, हजार, लाख, करोड शीर्षप्रहेलिका आदि जो संख्यात की राशियाँ है, उनका तो किसी न किसी प्रकार कथन किया जाना शक्य है, लेकिन संख्या इतनी ही नहीं है। अतएव उसके बाद की संख्या का कथन उपमा द्वारा ही सम्भव है। इसलिए सूत्र में उपमाकल्पना का आधार लेकर उत्कृष्ट सख्यात का स्वरूप स्पष्ट किया है।
शास्त्र में सत् और असत् दो प्रकार की कल्पना होती है। कार्य में परिणत हो सकने वाली कल्पना को सत्कल्पना और जो किसी वस्तु का स्वरूप समझाने मे तो उपयोगी हो, किन्तु कार्य मे परिणत न की जा सके उसे असत्कल्पना कहते हैं। सूत्रोक्त पल्य का विचार असत्कल्पना है और उसका प्रयोजन उत्कृष्ट सख्यात का स्वरूप समझाना मात्र है। मलधारीयावृत्ति तथा तिलोयपण्णत्ति आदि ग्रन्थो के आधार पर आचार्य महाप्रज्ञ जी ने उत्कृष्ट संख्यात आदि का जो स्वरूप समझाया है, वह बहुत विस्तृत, जटिल गणित का विषय होने से परिशिष्ट में दिया गया है। (परिशिष्ट ३ देखें)
508. (Q.) How much is Utkrisht samkhyat (maximum countable)?
(Ans.) I will explain Utkrisht samkhyat (maximum countable) as follows-Suppose there is an imaginary circular palya (silo) which is said to be one hundred thousand yojan in length and breadth and a little more than three hundred sixteen thou two hundred twenty seven (3,16,227) yojan, three Kosa, twenty eight hundred Dhanush and thirteen and a half Anguls in circumference. (This is the measure of Jambudveep.) This silo is filled with mustard seeds. Then those mustard seeds are emptied in continents and oceans by throwing one mustard seed in one ocean and one in one continent consecutively. Now imagine a silo of such vast area as the total number of continents and oceans thus touched by all those mustard seeds thrown one after another. This latter silo (called anavasthit-palya) is now filled with mustard seeds. Then those mustard seeds are emptied in continents and oceans by throwing one mustard seed in one ocean and one in one continent consecutively. Now imagine a silo of such vast area as the total number of continents and oceans thus touched by all those mustard seeds thrown one after another. One mustard seed is now put in this enormous sito (called Shalaka-palya). Even if unimaginable number of Loks (islands and oceans) are filled with mustard seeds from such enormous silo one does not arrive at Utkrisht samkhyat (maximum countable). सचित्र अनुयोगद्वार सूत्र-२
(372) Illustruted Anuyogadvar Sutra-
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