Book Title: Agam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Aryarakshit, Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
Publisher: Padma Prakashan

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Page 445
________________ ASAMKHYAT-ASAMKHYAT 513. (Q.) How much is Jaghanya Asamkhyat-asamkhyat (minimum innumerable-innumerable)? (Ans.) Jaghanya Asamkhyat-asamkhyat (minimum innumerable-innumerable) is equal to Jaghanya Yukt Asamkhyat (minimum medium innumerable) raised to the power of itself or Avalika. Or it is one more than Utkrisht Yukt Asamkhyat (maximum medium innumerable). All the numbers after Jaghanya Asamkhyat-asamkhyat (minimum innumerableinnumerable) and before Utkrisht Asamkhyat-asamkhyat (maximum innumerable-innumerable) are Ajaghanya-anutkrisht Asamkhyat-asamkhyat (intermediate innumerable-innumerable). ५१४. उक्कोसयं असंखेज्जासंखेज्जयं केत्तियं होति ? जहण्णयं असंखेज्जासंखेज्जयं जहण्णय असंखेज्जासंखेज्जयमेत्ताणं रासीणं अण्णमण्णभासो रूवूणो उक्कोसयं असंखेज्जासंखेज्जयं होइ, अहवा जहण्णयं परित्ताणंतयं रूवूणं उक्कोसयं असंखेज्जासंखेज्जयं होति । ५१४. (प्र.) उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात कितना होता है ? (उ.) जघन्य असंख्यातासंख्यात राशि का उसी जघन्य असंख्यातासंख्यात राशि से परस्पर गुणा करने पर जो राशि आती है, उससे एक कम संख्या उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात है । अथवा एक कम जघन्य परीतानन्त उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात का प्रमाण है। विवेचन - उत्कृष्ट असंख्यात - असंख्यात का स्वरूप सूत्र में बताया गया है, उस विषय को आचार्यों ने अन्य दूसरे प्रकार से भी परिभाषित किया है। जैसे- वर्ग की जो राशि आये, उसका भी पुनः वर्ग करना, फिर उस वर्ग की जो राशि आए, उसका भी पुनः वर्ग करना। इस तरह तीन बार वर्ग कर लें। फिर उस वर्ग राशि में निम्नलिखित दस असंख्यात राशियाँ जोडनी चाहिए "लोगागासपएसा धम्माधम्मेगजीवदेसा य। दव्वठिआ निओआ, पत्तेया चेव बोद्धव्या ॥ Jain Education International ठिइबंधज्झवसाणा अणुभागा जोगच्छे अपलिभागा। दोह य समाण समया असंखपक्खेवया दसउ ॥" अर्थात् (१) लोकाकाश के प्रदेश, (२) धर्मास्तिकाय के प्रदेश, (३) अधर्मास्तिकाय के प्रदेश, (४) एकजीव के प्रदेश, (५) द्रव्यार्थिक निगोद ( सूक्ष्म - बादर अनन्तकायिक वनस्पति जीवों के शरीर ), (६) अनन्तकाय को छोडकर शेष प्रत्येककायिक जातियों के जीव (अनन्तकायिकों को छोड़कर प्रत्येकशरीरी पृथ्वी, अप्, तेज, वायु, वनस्पति और त्रस जीव), (७) कर्मों के स्थितिबंध के असंख्यात सचित्र अनुयोगद्वार सूत्र - २ Illustrated Anuyogadvar Sutra-2 (378) For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org

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