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___ “क्योंकि यदि ‘पाँच प्रकार के प्रदेश हैं' यह कहो तो एक-एक प्रदेश पाँच-पाँच प्रकार 9 का हो जाने से तुम्हारे मत से पच्चीस प्रकार का प्रदेश होगा। इसलिए ऐसा मत कहो
कि ‘पाँच प्रकार का प्रदेश है।' यह कहो कि 'प्रदेश भजनीय (विकल्पयुक्त) है।" यथा
(१) स्यात् धर्मास्तिकाय का प्रदेश, (२) स्यात् अधर्मास्तिकाय का प्रदेश, (३) स्यात् की आकाशास्तिकाय का प्रदेश, (४) स्यात् जीव का प्रदेश, और (५) स्यात् स्कन्ध का
प्रदेश है।"
___ ऐसा कहने पर ऋजुसूत्रनय से संप्रतिशब्दनय कहता है-"तुम जो कहते हो कि 'प्रदेश - भजनीय है', यह कहना उचित नहीं है।"
"क्यों नहीं है ?"
"क्योंकि 'प्रदेश भजनीय है', ऐसा मानने से तो (१) धर्मास्तिकाय का प्रदेश अधर्मास्तिकाय का प्रदेश, आकाशास्तिकाय का प्रदेश, जीवास्तिकाय का प्रदेश और स्कन्ध o का भी प्रदेश हो सकता है। इसी प्रकार (२) अधर्मास्तिकाय का प्रदेश धर्मास्तिकाय का
प्रदेश, आकाशास्तिकाय का प्रदेश, जीवास्तिकाय का प्रदेश एवं स्कन्ध का प्रदेश हो सकता है। (३) आकाशास्तिकाय का प्रदेश भी धर्मास्तिकाय का प्रदेश, अधर्मास्तिकाय का प्रदेश, जीवास्तिकाय का प्रदेश एवं स्कन्ध का प्रदेश हो सकता है। (४) जीवास्तिकाय का प्रदेश भी धर्मास्तिकाय का प्रदेश, अधर्मास्तिकाय का प्रदेश, आकाशास्तिकाय का प्रदेश या स्कन्ध का प्रदेश हो सकता है। (५) स्कन्ध का प्रदेश भी धर्मास्तिकाय का प्रदेश, अधर्मास्तिकाय का प्रदेश, आकाशास्तिकाय का प्रदेश अथवा जीवास्तिकाय का प्रदेश हो सकता है।
इस प्रकार से अनवस्था (जहाँ तर्क व युक्ति का कहीं भी अन्त न हो उसे अनवस्था दोष कहा जाता है) हो जायेगी। अतः ऐसा मत कहो–'प्रदेश भजनीय है', किन्तु ऐसा कहो-'धर्मरूप जो प्रदेश है, वही प्रदेश धर्म है-धर्मात्मक है, जो अधर्मास्तिकाय का प्रदेश है, वही प्रदेश अधर्मास्तिकायात्मक है; जो आकाशास्तिकाय का प्रदेश है, वही प्रदेश आकाशात्मक है, जो जीवास्तिकाय का प्रदेश है, वही प्रदेश नोजीव है; इसी प्रकार जो स्कन्ध का प्रदेश है, वही प्रदेश नोस्कन्धात्मक है'।' __शब्दनय के ऐसा कहने पर सम्प्रति समभिरूढनय कहता है-“तुम कहते हो कि धर्मास्तिकाय का जो प्रदेश है, वही प्रदेश धर्मास्तिकाय रूप है, यावत् स्कन्ध का जो प्रदेश है, वही प्रदेश नोस्कन्धात्मक है, किन्तु तुम्हारा यह कथन युक्तिसंगत नहीं है।"
"किसलिए?"
सचित्र अनुयोगद्वार सूत्र-२
(330)
Illustrated Anuyogadvar Sutra-2
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