Book Title: Agam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Aryarakshit, Amarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
Publisher: Padma Prakashan

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Page 422
________________ ANALOGY OF ASAT TO A SAT (3) The (examples of) analogy of an asat (non-existent) to a sat (existent) thing are as follows-To express the life-spans of existent infernal beings, animals, human beings and divine beings in conceptual terms like Palyopam and Sagaropam that are nonexistent. असद् - सद् रूप औपम्यसंख्या (४) असंतयं संतएणं उवमिज्जति । जहापरिजूरियपेरंतं चलंतर्बेट पडंत निच्छीरं । पत्तं वसणप्पत्तं कालप्पत्तं भणइ गाहं ॥ २ ॥ जह तुम्भे तह अम्हे, तुम्हे वि य होहिहा जहा अम्हे । अप्पाहेति पडतं पंडुयपत्तं किसलयाणं ॥ ३ ॥ वि अत्थि वि य होही उल्लावो किसल - पंडुपत्ताणं । उवमा खलु एस कया भवियजणविबोहणट्ठाए ॥४॥ (४) अविद्यमान - असद् वस्तु को विद्यमान - सद् वस्तु से उपमित करने को असत् - सत् औपम्यसंख्या कहते हैं । जैसे सर्व प्रकार से जीर्ण, डठल से टूटे, वृक्ष से नीचे गिरे हुए, निस्सार और वृक्ष से वियोग हो जाने से दुःखित ऐसे पुराने पत्ते ने वसंत ऋतु में खिले हुए नवीन पत्ते (किसलयकोंपल) से कहा । ( किसी गिरते हुए पुराने - जीर्ण पीले पत्ते ने नवोद्गत किसलयों - कोपलों से कहा-)“इस समय जैसे तुम हो, हम भी पहले वैसे ही थे, तथा इस समय जैसे हम हो रहे हैं, वैसे ही आगे चलकर तुम भी हो जाओगे ।" यहाॅ जो जीर्ण पत्तो और किसलयो के संवाद का उल्लेख किया गया है, वह न तो कभी हुआ है, न होता है और न होगा, किन्तु भव्य जनों को प्रतिबोध के लिए (संसार की क्षणभंगुरता बताने के लिए तथा अपने अभ्युदय में अहंकार और दूसरों की शिक्षा का अनादर नहीं करना चाहिए ) कहा है | २ - ३ - ४॥ ANALOGY OF SAT TO AN ASAT (4) The (examples of) analogy of a sat (existent) to an asat (nonexistent) thing are as follows— संख्याप्रमाण- प्रकरण Jain Education International (357) The Discussion on Samkhya Pramana For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org

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