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___दव्यसंखा जस्स णं संखा ति पदं सिक्खितं ठियं जियं मियं परिजियं जाव कंगिण्ह (कंटोह) विप्पमुक्कं (गुरुवायणोवगय), से णं तत्थ वायणाए पुच्छणाए परियट्टणाए धम्मकहाए, नो अणुप्पेहाए। ___ कम्हा ? अणुवओगो दवमिति कटु।
४८२. (प्र.) आगमतः द्रव्यशंख क्या है? ॐ (उ.) आगमतः द्रव्यशंख (संख्या) का स्वरूप इस प्रकार है--जिसने शंख (संख्या) यह
पद सीख लिया, हृदय में स्थिर किया, जित किया-तत्काल स्मरण हो जाये ऐसा याद किया,
मित किया-मनन किया, अधिकृत कर लिया अथवा (आनुपूर्वी-अनानुपूर्वीपूर्वक जिसको • सर्व प्रकार से बार-बार दुहरा लिया) यावत् निर्दोष स्पष्ट स्वर से शुद्ध उच्चारण किया
तथा गुरु से वाचना ली, जिस कारण वाचना, पृच्छना, परावर्तना एवं धर्मकथा से युक्त भी हो गया परन्तु जो अर्थ का अनुचिन्तन करने रूप अनुप्रेक्षा से रहित हो, उपयोग न होने से वह आगम से द्रव्यशंख (संख्या) कहलाता है। ___ क्योंकि सिद्धान्त में 'अनुपयोगो द्रव्यम्'-उपयोग से शून्य को द्रव्य कहा है।
482. (Q.) What is this Agamatah dravya shankh/samkhya (physical shankh/samkhya with scriptural knowledge) ?
(Ans.) Physical shankh/samkhya in context of Agam is like this-(For instance) a person (an ascetic) has studied properly (shukshit); understood and absorbed (jit); retained in mind (chutt); made assessment in terms of number of verses, words, syllables etc. (mit); perfected by revising in normal and reverse sequence (parijit); committed to memory as firmly as one's own name (naam samam) the term shankh/samkhya (Sutra) and recited it fluently with phonetic perfection (ghoshasamam) without shortening syllables (ahinaksharam), without extending syllables (anatyakshar), without shifting syllables (avyavuddhakshar) and without skipping syllables (askhalıt); without mixing up of different phrases (amilit); and without combining different phrases and aphorisms (avyatyamredit). When such person proceeds to study, inquire into, revise and teach this term shankh/samkhya acquired through the discourse of the guru (guruvachanopagat) emanating from vocal cords and lips
संख्याप्रमाण-प्रकरण
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The Discussion on Samkhya Pramana
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