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“अष्टविधकर्म चयरिक्तीकरणात् चारित्रम्।"-आठ प्रकार के कर्मों के चय (समूह) को रिक्त-खाली करने की साधना चारित्र है। (विशेषावश्यकभाष्य जिनभद्रगणि)
चारित्र के भेद-आचार्यों ने विविध अपेक्षाओं से चारित्र के अनेक भेद बताये है-- एक भेद-सांसारिक प्रवृत्तियो से निवृत्ति रूप चारित्र एक है।
दो भेद-व्यवहार और निश्चय दृष्टि से चारित्र के दो भेद है। इन्द्रिय-सयम तथा प्राणि-संयम रूप चारित्र के दो भेद होते हैं।
तीन भेद-औपशमिक, क्षायिक और क्षायोपशमिक चारित्र। ___ चार भेद-सराग संयम और वीतराग संयम (छमस्थ का) अयोग चारित्र और सयोग चारित्र (वीतराग का)।
पाँच भेद-प्रस्तुत सूत्र मे बताये हैं।
इसी तरह निवृत्ति रूप परिणामो की तरतमता की अपेक्षा चारित्र के संख्यात, असख्यात और अनन्त भेद हो सकते हैं।
(१) सामायिकचारित्र-आगमो के व्याख्याकार आचार्यों का कथन है कि वास्तव मे तो सामायिक रूप चारित्र एक ही प्रकार का है। क्योकि समस्त सावध प्रवृत्तियो का त्याग करना और रागरहित आत्मा का 'सम अवस्था'-समभाव में स्थित रहना, सामायिक है और यही चारित्र है। फिर भी प्रायश्चित्त, विशिष्ट तपश्चरण और विशेष निर्मलता की दृष्टि से यहाँ उसके पॉच भेद बताये है। इनमे से सामायिक चारित्र के दो भेद है
(क) इत्वरकालिक (अल्पकालिक) सामायिकचारित्र-प्रथम व अन्तिम तीर्थकरो के शासन मे जब तक पाँच महाव्रतों का आरोपण नही किया जाता, तब तक जघन्य ७ दिन, मध्यम ४ मास और उत्कृष्ट ६ मास तक सामायिकचारित्र मे रखा जाता है। उसके बाद छेदोपस्थापनीय (बडी दीक्षा) चारित्र अगीकार किया जाता है।
(ख) यावत्कथिक (यावज्जीवन)-बीच के २२ तीर्थकरो के शासन में सामायिकचारित्र यावज्जीवन काल का होता है। क्योंकि इन तीर्थंकरो के शिष्यो को दूसरी बार सामायिकचारित्र नहीं दिया जाता। प्रथम बार मे अगीकृत मुनि-दीक्षा ही उनके जीवनभर के लिए होती है।
(२) छेदोपस्थापनीयचारित्र-छेद + उपस्थापन = जिस चारित्र में पूर्व पर्याय का छेदन (काट) कर पुनः महाव्रतों का आरोपण किया जाता है उसे छेदोपस्थापनीय कहते है। इसके दो भेद है
(क) सातिचार-व्रत भग हो जाने पर या दोष सेवन करने पर उसकी शुद्धि करके पुन. महाव्रतारोपण करना। यह प्रथम व अन्तिम तीर्थंकरो के शासन मे ही होता है।
(ख) निरतिचार-प्रथम दीक्षा के बाद (इत्वर सामायिक वाले मुनियो को) पुन. महाव्रतारोपण कराना (बडी दीक्षा देना) अथवा एक तीर्थ से दूसरे तीर्थं में जाने वाले साधुओ को महाव्रतारोपण कराना।
आगमप्रमाण-प्रकरण
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The Discussion on Agam Pramana
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