________________
४. सुहुमसंपरायचरित्तगुणप्पमाणे दुविहे पण्णत्ते। तं जहा-संकिलिस्समाणयं च विसुज्झमाणयं च।
५. अहक्खायचरित्तगुणप्पमाणे दुविहे पण्णत्ते। तं जहा-पडिवाई य अपडिवाई य-छउमत्थे य केवलिए य। से तं चरित्तगुणप्पमाणे। से तं जीवगुणप्पमाणे। से तं गुणप्पमाणे।
॥आगम प्रमाणे त्ति पयं सम्मत्तं ॥ __४७२. (प्र.) चारित्रगुणप्रमाण क्या है ?
(उ.) चारित्रगुणप्रमाण के पाँच भेद हैं। यथा-(१) सामायिकचारित्रगुणप्रमाण, (२) छेदोपस्थापनीयचारित्रगुणप्रमाण, (३) परिहारविशुद्धिचारित्रगुणप्रमाण, 0 (४) सूक्ष्मसंपरायचारित्रगुणप्रमाण, (५) यथाख्यातचारित्रगुणप्रमाण।
(१) सामायिकचारित्रगुणप्रमाण दो प्रकार का है-(क) इत्वरिक, और (ख) यावत्कथिक।
(२) छेदोपस्थापनीयचारित्रगुणप्रमाण के दो भेद हैं-(क) सातिचार, और (ख) निरतिचार।
(३) परिहारविशुद्धिचारित्रगुणप्रमाण दो प्रकार का है-(क) निर्विश्यमानक, और (ख) निर्विष्टकायिक।
(४) सूक्ष्मसंपरायचारित्रगुणप्रमाण दो प्रकार का है-(क) संक्लिश्यमानक, और (ख) विशुद्धयमानक। ___ (५) यथाख्यातचारित्रगुणप्रमाण के दो भेद हैं-(क) प्रतिपाती, और (ख) अप्रतिपाती।
अथवा (क) छाद्मस्थिक, और (ख) कैवलिक। का यह चारित्रगुणप्रमाण का स्वरूप है। जीव गुणप्रमाण तथा गुणप्रमाण का कथन समाप्त हुआ।
विवेचन-चारित्र के वर्णन मे सर्वप्रथम 'चारित्र' शब्द का अर्थ समझे तो अधिक उपयोगी रहेगा। आचार्यों ने शब्द की दृष्टि से और अर्थ की दृष्टि से चारित्र की भिन्न-भिन्न परिभाषाएँ दी हैं। ___ चारित्र की परिभाषा-वृत्तिकार मलधारी हेमचन्द्र ने शब्द की दृष्टि से चारित्र का अर्थ किया है"चरति अनिन्दितमनेनेति चारित्रम्।"-जिसको धारण करके मनुष्य अनिन्दित-श्रेष्ठ आचरण करता है, वह है चारित्र। (वृत्ति पत्राक २०१)
निम्न व्याख्या अर्थ या भाव की दृष्टि को अधिक स्पष्ट करती है
सचित्र अनुयोगद्वार सूत्र-२
(308)
Illustrated Anuyogadvar Sutra-2
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org