________________
This concludes the description of Laukık Agam (mundane era scripture).
४६९. से किं तं लोगुत्तरिए ?
लोगुत्तरिए जं इमं अरहंतेहिं भगवंतेहिं उप्पण्णणाण-दसणधरेहिं तीयपच्चुप्पण्ण-मणागयजाणएहिं तेलोक्कवहिय-महिय-पूइएहिं सवण्णूहिं सव्वदरिसीहिं पणीयं दुवालसंगं गणिपिडगं। तं जहा-आयारो जाव दिद्विवाओ। से तं लोगुत्तरिए आगमे।
४६९. (प्र.) लोकोत्तर आगम क्या है ?
(उ.) उत्पन्न ज्ञान-दर्शन के धारक, अतीत, प्रत्युत्पन्न (वर्तमान) और अनागत के ज्ञाता, त्रिलोकवर्ती जीवों द्वारा सहर्ष वंदित, पूजित सर्वज्ञ, सर्वदर्शी अरिहंत, भगवन्तो द्वारा प्रणीत .
आचारांग यावत् दृष्टिवाद पर्यन्त द्वादशांग रूप गणिपिटक लोकोत्तरिक आगम हैं। ___469. (Q.) What is this Lokottar Agam (spiritual scripture)? । ___ (Ans.) Lokottar Agam (spiritual scripture) is the canon in the form of Dvadashanga Ganipitak (the twelve-part canon compiled by Ganadharas) expounded by those who are Arhantas (the venerated ones); Bhagavantas (the divinely magnificent ones); who have acquired ultimate knowledge and ultimate perception; who know all things of past, present and future; who are all knowing and all seeing; who are beheld, extolled and worshipped in the three worlds; and who are holders of uninterrupted excellent knowledge and perception. This Ganipitak includes Acharanga, and (so on up to) Drishtivad.
४७०. अहवा आगमे तिविहे पण्णत्ते। तं जहा-सुत्तागमे य अत्थागमे य तदुभयागमे य। ___ अहवा आगमे तिविहे पण्णत्ते। तं.-अत्तागमे, अणंतरागमे, परंपरागमे य।
तित्थगराणं अत्थस्स अत्तागमे, गणहराणं सुत्तस्स अत्तागमे अत्थस्स अणंतरागमे, गणहरसीसाणं सुत्तस्स अणंतरागमे अत्थस्स परंपरागमे, तेण परं सुत्तस्स वि अत्थस्स वि णो अत्तागमे णो अणंतरागमे परंपरागमे। से तं लोगुत्तरिए। से तं आगमे। से तं णाणगुणप्पमाणे।
सचित्र अनुयोगद्वार सूत्र-२
( 300 )
Illustrated Anuyogadvar Sutra-2
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org