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अवगाहना-प्रकरण THE DISCUSSION ON AVAGAHANA
नारक-अवगाहना
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__३४७. (१) णेरइयाणं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा पन्नत्ता ?
गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता। तं जहा-१. भवधारणिज्जा य, २. उत्तरवेउब्विया य।
तत्थ णं जा सा भवधारणिज्जा सा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं पंच धणुसयाई। __ तत्थ णं जा सा उत्तरवेउब्विया सा जहण्णेणं अंगुलस्स संखेज्जइभाग, उक्कोसेणं धणुसहस्सं।
३४७. (१) (प्र.) भगवन् ! नारकों के शरीर की अवगाहना कितनी बडी कही है ?
(उ.) गौतम ! नारक जीवों की शरीर-अवगाहना दो प्रकार से कही है(१) भवधारणीय (शरीर-अवगाहना-जन्मकाल से जीवन पर्यंत रहने वाले शरीर की ऊँचाई), और (२) उत्तरवैक्रिय (प्रयोजनवश वैक्रिय शक्ति द्वारा निर्मित शरीर)।
उनमें से भवधारणीय (शरीर) की अवगाहना जघन्य (सबसे अल्प) जो उत्पत्ति के समय होती है अंगुल के असख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट (सबसे अधिक) पाँच सौ धनुष की होती है। ___ उत्तरवैक्रिय शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग एवं उत्कृष्ट एक हजार धनुष की होती है। NARAK AVAGAHANA
347. (1) (Q.) Bhante ! How large is the avagahana (space occupied) by the body of a naarak (infernal being) ?
(Ans.) Gautam ! The avagahana (space occupied) by the body of a naarak (infernal being) is of two kinds—(1) Bhavadharaniya (by "the incarnation sustaining body" or "the body that lasts from birth to death" or "the normal body'), and (2) Uttar-vaikrıya (by the body created for some purpose by valkriya power or power of transmutation).
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अवगाहना-प्रकरण
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The Discussion on Avagahana
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