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उस्सेहंगुलविक्खंभा, तं समणस्स भगवओ महावीरस्स अद्धंगुलं, तं सहस्सगुणं पमाणंगुलं भवति।
३५८. (प्र.) प्रमाणांगुल का क्या स्वरूप है?
(उ.) (सबसे बडे अंगुल को प्रमाणांगुल कहते है।) यह इस प्रकार है-भरत क्षेत्र पर शासन करने वाले चक्रवर्ती राजा का अष्ट सुवर्ण जितने भार वाला छह तल वाला, बारह - भुजा (कोटियों) और आठ कर्णिका (कोनों) वाला तथा अहरन के संस्थान (सुनार के एरण
जैसे आकार) वाला काकणीरत्न होता है। उसकी प्रत्येक भुजा उत्सेधांगुल के समान चौडाई * वाली है, वह एक भुजा श्रमण भगवान महावीर के अर्धांगुल जितनी होती है। उस अर्धांगुल a से हजार गुणा (अर्थात् उत्सेधांगुल से हजार गुणा) एक प्रमाणांगुल होता है। PRAMANANGUL
358. (Q.) What is this Pramanangul (paramount angul) ?
(Ans.) (The angul of largest dimension is called Pramanangul or paramount angul.) It is defined as follows- A Chakravartı king (an emperor) ruling over Bharat area in all the four directions has a jewel named Kakını weighing eight suvarn (a unit of weight) and having six sides or surfaces, twelve edges and eight corners and is shaped like an anvil. Each of its sides measures one utsedhangul which is equal to half angul of Shraman Bhagavan Mahavir. One thousand times of this is one pramanangul (paramount angul). __३५९. एतेणं अंगुलप्पमाणएणं छ अंगुलाई पादो, दो पाया-दुवालस अंगुलाई विहत्थी, दो विहत्थीओ रयणी, दो रयणीओ कुच्छी, दो कुच्छीओ धणू, दो धणुसहस्साई
गाउयं, चत्तारि गाउयाइं जोयणं।
__३५९. इस अंगुल से छह अंगुल का एक पाद, दो पाद अथवा बारह अंगुल की एक * वितस्ति, दो वितस्तियों की रत्नि (हाथ), दो रनि की एक कुक्षि, दो कुक्षियो का एक धनुष,
दो हजार धनुष का एक गव्यूत और चार गव्यूत का एक योजन होता है। ___विवेचन-इन दो सूत्रो मे से पहले मे प्रमाणागुल का व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ बतलाकर उसके यथार्थ मान का निर्देश किया है। इसी प्रसग मे चक्रवर्ती राजा का स्वरूप, उसके प्रमुख रत्ल काकणी का प्रमाण और श्रमण भगवान महावीर के आत्मागुल का मान बता दिया है।
सचित्र अनुयोगद्वार सूत्र-२
(138)
Illustrated Anuyogadvar Sutra-2
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