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The two-sensed beings are devoid of baddh vackriya and aharak (bound transmutable and telemigratory) bodies. The details regarding the mukta vaikriya and aharak shariras (abandoned transmutable and telemigratory bodies) should be read just as the general statement regarding mukta audarik shariras (abandoned gross physical bodies).
The details about the baddh and mukta taijas-karman sharıras (bound and abandoned fiery and karmic bodies) should be read just as the statement about their audarik sharıras (gross physical bodies).
(२) जहा बेइंदियाणं तहा तेइंदियाणं चउरिंदियाणं वि भाणियव्यं ।
(२) द्वीन्द्रियों के बद्ध-मुक्त पाँच शरीरों के सम्बन्ध में जो निर्देश किया है, वैसा ही ॐ त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों के विषय में भी कहना चाहिए।
विवेचन-प्रस्तुत पाठ में द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवो के बद्ध और मुक्त शरीरो की प्ररूपणा है। उसका द्वीन्द्रिय की अपेक्षा से स्पष्टीकरण इस प्रकार है___ द्वीन्द्रियो के बद्ध औदारिकशरीर असख्यात है और उस असंख्यात का परिमाण काल की अपेक्षा असख्यात उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल के जितने समय होते है, उतना है। क्षेत्र की अपेक्षा वे शरीर प्रतर के असंख्यातवे भाग मे वर्तमान असंख्यात श्रेणियो के प्रदेशों की राशि जितने है। इन श्रेणियो की विष्कभसूची असख्यात कोटाकोटि योजनो की जानना चाहिए। इतने प्रमाण वाली विष्कंभ (विस्तार) सूची असख्यात श्रेणियों के वर्गमूल रूप होती है। किसी राशि को उसी राशि से गुणा करने पर वर्गफल
आता है। जिस राशि से गुणा किया था वह उस वर्गफल का वर्गमूल होता है। इसका तात्पर्य यह है कि * आकाशश्रेणी मे रहे हुए समस्त प्रदेश असख्यात होते हैं, जिनको कल्पना से ६५,५३६ समझ लें। यह
६५,५३६ की संख्या असंख्यात की सूचक मान ले। इस संख्या का प्रथम वर्गमूल २५६, दूसरा वर्गमूल १६, तीसरा वर्गमूल ४ तथा चौथा वर्गमूल २ हुआ। ये कल्पित वर्गमूल असंख्यात वर्गमूल रूप है। इन वर्गमूलों का जोड करने पर (२५६ + १६ + ४ + २ = २७८) दो सौ अठहत्तर हुआ। यह २७८ प्रदेशो वाली विष्कम्भसूची है। ____ अब इसी शरीरप्रमाण को दूसरे प्रकार से बताने के लिए सूत्र मे पद दिया है-" "पयरं अवहीरइ * असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीहि कालओ।" अर्थात् द्वीन्द्रिय जीवो के बद्ध औदारिकशरीरों से यदि
सब प्रतर खाली किया जाये तो असख्यात उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी कालो के समयो से वह समस्त प्रतर
द्वीन्द्रिय जीवों के बद्ध औदारिकशरीरों से खाली किया जा सकता है और क्षेत्र की अपेक्षा "अंगुलपयरस्स * आवलियाए यं असंखेजइभागं पडिभागेणं।" अर्थात् अंगुल प्रतर के जितने प्रदेश हैं उनको एक-एक * द्वीन्द्रिय जीवों से भरा जाये और फिर उन प्रदेशों से आवलिका के असंख्यातवें भाग रूप समय में सचित्र अनुयोगद्वार सूत्र-२
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Ilustrated Anuyogadvar Sutra-2
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