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४०२. रूविअजीवदव्वा णं भंते ! कतिविहा पन्नत्ता ?
गो. ! चउव्विहा पण्णत्ता । तं जहा - १. खंधा, २. खंधदेसा, ३. खंधप्पदेसा, ४. परमाणुपोग्गला ।
४०२. (प्र.) भगवन् ! रूपी अजीवद्रव्य के कितने प्रकार हैं ?
( उ ) गौतम ! वे चार प्रकार के है, यथा - ( १ ) स्कन्ध, (२) स्कन्धदेश, (३) स्कन्धप्रदेश, और (४) परमाणु पुद्गल ।
402. (Q.) Bhante ! How many kinds of rupt ajva dravya (nonsoul entities with form) are said to be there?
(Ans.) Gautam ! Rupi ajva dravya (non-soul entities with form) are said to be of four kinds – ( 1 ) Skandh (aggregate), (2) Skandhdesh (sections of the aggregate), (3) Skandh-pradesh (space-points of the aggregate), and (4) Paramanu pudgala ( ultimate-particle of matter).
४०३. ते णं भंते ! किं संखेज्जा असंखेज्जा अनंता ?
गोमा ! नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अनंता ।
सेकेणणं भंते! एवं वुच्चति - ते णं नो संखेज्जा, जो असंखेज्जा, अनंता ?
गो. ! अनंता परमाणुपोग्गला अणंता दुपएसिया खंधा जाव अनंता अनंतपदेसिया खंधा, से एतेणं अणं गोयमा ! एवं बुच्चति - ते णं नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अनंता ।
४०३. (प्र.) भगवन् ! ये स्कन्ध आदि संख्यात हैं, असंख्यात हैं अथवा अनन्त है ? ( उ ) गौतम ! ये स्कन्ध आदि संख्यात नही हैं, असंख्यात भी नही है किन्तु अनन्त हैं।
( प्र . ) भगवन् ! किस हेतु से ऐसा कहा जाता है कि स्कन्ध आदि सख्यात नही हैं, असख्यात नहीं हैं किन्तु अनन्त है ?
( उ ) गौतम ! परमाणु पुद्गल अनन्त हैं, द्विप्रदेशिकस्कन्ध अनन्त हैं यावत् अनन्तप्रदेशिकस्कन्ध अनन्त है । इसीलिए गौतम ! यह कहा है कि वे न संख्यात है, न असख्यात हैं किन्तु अनन्त हैं ।
सचित्र अनुयोगद्वार सूत्र - २
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Illustrated Anuyogadvar Sutra-2
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