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शरीर-प्रकरण THE DISCUSSION ON BODY
शरीरनिरूपण
४०५. कति णं भंते ! सरीरा पं. ?
गो. ! पंच सरीर पण्णत्ता। तं जहा-१. ओरालिए, २. वेउब्बिए, ३. आहारे, ४. तेयए, ५. कम्मए।
४०५. (प्र.) भंते ! शरीर कितने प्रकार के हैं ?
(उ.) गौतम ! शरीर पाँच प्रकार के है। यथा-(१) औदारिक, (२) वैक्रिय, (३) आहारक, (४) तैजस्, तथा (५) कार्मण।
विवेचन-उक्त प्रश्नोत्तर मे शरीर के पाँच भेदो का नामोल्लेख किया गया है।
शरीर का अर्थ-जो प्रतिक्षण शीर्ण-जर्जरित होता रहता है अर्थात् उत्पत्ति समय से लेकर निरन्तर क्षीण होता रहता है उसे शरीर कहते है। ससारी जीवो के शरीर की रचना शरीरनामकर्म के उदय से होती है। इनके लक्षण क्रमश. इस प्रकार है
(१) औदारिकशरीर-मूल शब्द 'उदार' है। शास्त्रो मे 'उदार' के तीन अर्थ बताये है-(१) उदार का अर्थ होता है-मॉस, हड्डियो, स्नायु आदि से निर्मित शरीर। मॉस-मज्जा आदि सप्त धातु-उपधातुएँ
औदारिकशरीर मे ही होती है। इस शरीर के स्वामी मनुष्य और तिर्यच है। (२) जो शरीर उदार अर्थात् प्रधान है। तीर्थकरो और गणधरो का शरीर औदारिक होता है। इस अपेक्षा से यह ‘उदार'–उत्तम माना गया है। अथवा औदारिकशरीर से मुक्ति प्राप्त होती है एव औदारिकशरीर मे रहकर ही जीव उत्कृष्ट सयम की आराधना कर सकता है। इस कारण उसे प्रधानतम माना गया है। (३) उदार अर्थात् विस्तारवान्-विशाल शरीर। औदारिकशरीर की उत्कृष्ट अवगाहना एक हजार योजन कुछ अधिक है, जबकि वैक्रियशरीर का इतना प्रमाण नही है। उसकी स्वाभाविक अवगाहना अधिक से अधिक पाँच सो धनुष की है और वह मात्र सातवी नरकपृथ्वी के नारको की होती है। यद्यपि उत्तरवैक्रियशरीर एक लाख योजन तक का होता है, किन्तु वह भवान्त तक स्थायी नही रहता। (हारिभद्रीय वृत्ति, पृ. ८७)
(२) वैक्रियशरीर-जो शरीर विविध क्रियाएँ करने में समर्थ हो अथवा विशिष्ट (विलक्षण) क्रिया करने तथा विशेष रूप धारण करने वाला शरीर वैक्रिय कहलाता है। यह वैक्रियशरीर दो प्रकार का है-लब्धिप्रत्ययिक और भवप्रत्ययिक। तपोविशेष आदि विशिष्ट निमित्तो से जो प्राप्त हो उसे लब्धिप्रत्ययिक और जो भव-जन्म के निमित्त से सहज ही प्राप्त हो उसे भवप्रत्ययिक वैक्रियशरीर
शरीर-प्रकरण
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The Discussion on Body
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