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(५) जहा असुरकुमाराणं तहा जाव थणियकुमाराणं ताव भाणियव्वं ।
(५) असुरकुमारों में जैसे इन पाँच शरीरों का कथन किया है, वैसा ही स्तनितकुमार - पर्यन्त सब भवनवासी देवों के विषय में जानना चाहिए।
(5) The details about bodies of all other abode-dwelling gods up to Stanitkumar should be read just as the details about Asurkumars. पृथ्वी-अप्-तेजस्कायिक जीवों के बद्ध-मुक्त शरीर
४२०. (१) पुढविकाइयाणं भंते ! केवइया ओरालियसरीरा पन्नत्ता ? __ गोयमा ! दुविहा पं.-बद्धेल्लया य मुक्केवल्लया य। एवं जहा ओरालियसरीरा तहा भाणियव्वा। ___ पुढविकाइयाणं भंते ! केवइया वेउब्बियसरीरा पनत्ता ?
गोयमा ! दुविहा पं.। तं.-बद्धेल्लया य मुक्केल्लया य। तत्थ णं जे ते बद्रेल्लया ते णं णत्थि। मुक्केल्लया जहा ओहिया ओरालियसरीरा तहा भाणियव्वा।
आहारगसरीरा वि एवं चेव भाणियव्या। तेयग-कम्मगसरीराणं जहा एएसिं चेव ओरालियसरीरा तहा भाणियव्या।
४२०. (१) (प्र.) भगवन् ! पृथ्वीकायिकों के कितने औदारिकशरीर कहे हैं ?
(उ.) गौतम ! इनके औदारिकशरीर दो प्रकार के कहे हैं-बद्ध और मुक्त। र इनके दोनों शरीरों की संख्या सामान्य बद्ध और मुक्त औदारिकशरीरों जितनी जानना चाहिए।
(प्र.) भगवन् ! पृथ्वीकायिकों के वैक्रियशरीर कितने कहे हैं ? ___ (उ.) गौतम ! वे दो प्रकार के कहे गये हैं-बद्ध और मुक्त। इनमें से बद्ध तो इनके नहीं होते हैं और मुक्त के लिए औदारिकशरीरो के समान ही जानना चाहिए।
आहारकशरीरों की वक्तव्यता भी इसी प्रकार जानना चाहिए। इनके बद्ध और मुक्त तैजस्-कार्मण शरीरों की प्ररूपणा भी इनके बद्ध और मुक्त औदारिकशरीरों के समान समझना चाहिए।
सचित्र अनुयोगद्वार सूत्र-२
(244)
Illustrated Anuyogadvar Sutra-2
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