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आयुस्थिति-प्रकरण THE DISCUSSION ON LIFE-SPAN
नारकों की स्थिति का मान
३८३. (१) णेरइयाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? ___ गो. ! जहन्नेणं दसवाससहस्साइं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं। __३८३. (१) (प्र.) भगवन् ! नैरयिक जीवो की स्थिति (आयु) कितने काल की है ?
(उ.) गौतम ! सामान्य रूप मे (नारक जीवो की स्थिति) जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट तैतीस सागरोपम की है।
विवेचन-वृत्तिकार ने स्थिति' शब्द का अर्थ किया है-“स्थीयते नारकादि भवेष्वनयेति स्थितिः।"अर्थात् जहाँ नरक आदि गतियो में जीव को आयुष्य कर्म भोगने के लिए स्थित रहना-रुकना पडता है, उस काल को स्थिति कहा है। जैसे कर्मग्रन्थो मे आयुस्थिति, भवस्थिति, कायस्थिति और कर्मस्थिति यो चार प्रकार की स्थिति बताई है। यहाँ स्थिति' शब्द का भाव है जब तक जीव उस पर्याय मे रहता है। (वृत्ति, पत्र १८४)। यहाँ क्रमश २४ दण्डको के जीवो की आयुस्थिति की चर्चा की गई है। LIFE-SPAN OF INFERNAL BEINGS
383. (1) (Q.) Bhante ! What is the duration of the sthiti (stay in one place or state, life-span) of infernal beings ?
(Ans.) Gautam ! The minimum life-span (of the infernal beings) is ten thousand years and the maximum is thirty three Sagaropam
Elaboration --The commentator (Vrittı) has explained the term sthiti as--the duration for which a being has to stay in a dimension of birth, like hell, as a consequence of ayushya-karma (life-span determining karma) is called sthiti Karma Granth mentions four kinds of sthiti-Aju-sthiti, Bhava-sthiti, Kaya-sthiti and Karma-sthiti In simple terms sthiti is the duration for which a being lives in a specific state of birth, life-span (Vritti, leaf 184) Here the life-span of beings in 24 Dandaks (places of suffering) have been discussed in proper order
o आयुस्थिति-प्रकरण
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The Discussion on Life-Span
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