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सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम-सागरोपम
३९६. से किं तं सुहुमे खेत्तपलिओवमे ? __ सुहुमे खेत्तपलिओवमे से जहाणामए पल्ले सिया-जोयणं आयाम-विक्खंभेणं, जोयणं उड्ढे उच्चत्तेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं; से णं पल्ले एगाहियबेआहिय-तेहिय. जाव उक्कोसेणं सत्तरत्त परूढाणं सम्मढे सन्निचिते भरिए वालग्गकोडीणं। तत्थ णं एगमेगे वालग्गे असंखेज्जाई खंडाई कज्जइ, ते णं वालग्गा दिट्ठीओगाहणाओ असंखेज्जइभागमेत्ता सुहुमस्स पणगजीवस्स सरीरोगाहणाओ असंखेज्जगुणा। ते णं वालग्गा णो अग्गी डहेजा, नो वातो हरेज्जा, णो कुच्छेज्जा, णो पलिविद्धंसेज्जा, णो पूइत्ताए हब्दमागच्छेज्जा। जे णं तस्स पल्लस्स आगासपदेसा तेहिं वालग्गेहिं अप्फुन्ना वा अणप्फुण्णा वा तओ णं समए समए गते एगमेगं आगासपदेसं अवहाय जावइएणं कालेणं से पल्ले खीणे नीरए निल्लेवे णिट्ठिए भवति। से तं सुहुमे
खेत्तपलिओवमे। ___ ३९६. (प्र.) वह सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम क्या है ?
(उ.) सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम का स्वरूप इस प्रकार है-जैसे एक योजन लम्बा-चौडा, एक योजन ऊँचा और कुछ अधिक तिगुनी परिधि वाला धान्य के पल्य के समान एक पल्य हो। एक दिन, दो दिन, तीन दिन यावत् सात दिन के बढे हुए बालाग्रो से ठसाठस भरा जाये। बालाग्रों के असंख्यात-असख्यात ऐसे खण्ड किये जाये, जो दृष्टि में आने वाले पुद्गलो की अवगाहना से असंख्यात भाग हो। उन बालाग्र खण्डों को न तो अग्नि जला सके और न वायु उडा सके, वे न तो सड-गल सकें और न जल से भीग सकें, उनमें दुर्गन्ध भी उत्पन्न न हो सके। उस पल्य के बालाग्रो से जो आकाशप्रदेश स्पृष्ट (व्याप्त) हुए हों और स्पृष्ट न हुए हों (दोनों प्रकार के प्रदेश यहाँ ग्रहण करना चाहिए)। उनमें से प्रति समय एक-एक आकाशप्रदेश का अपहार किया जाये-निकाला जाये तो जितने काल में वह पल्य क्षीण, नीरज, निर्लेप एव सर्वात्मना विशुद्ध हो जाये, उसे सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम कहते है। SUKSHMA KSHETRA PALYOPAM AND SAGAROPAM
396. (Q.) What is this Sukshma Kshetra Palyopam ?
(Ans.) Sukshma Kshetra Palyopam is described as follows For example there is a silo one yojan long, one yojan wide, one yojan high and with a circumference of a little more than three times
आयुस्थिति-प्रकरण
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The Discussion on Life-Span
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