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तीर्थकरो की तरह चक्रवर्ती राजा भी उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल के तीसरे, चौथे आरे मे होते हैं। एक अवसर्पिणी काल मे बारह चक्रवर्ती होते है और वह एक समय मे एक क्षेत्र मे एक ही चक्रवर्ती होता है। छह खण्ड पर उसका एक छत्र शासन होता है। प्रत्येक चक्रवर्ती सात एकेन्द्रिय और सात पंचेन्द्रिय, कुल चौदह रत्नो का स्वामी होता है। प्रस्तुत मे उल्लिखित काकणी रत्न पार्थिव रत्न है
और वह आठ सुवर्ण जितना भारी (वजन वाला) होता है। सुवर्ण उस समय का एक तोल था। वह चारो ओर से सम होता है। उसकी आठ कर्णिकायें कोने और बारह कोटियाँ-भुजाएँ होती है। प्रत्येक भुजा एक उत्सेधागुल की लम्बाई, चौडाई वाली विष्कम प्रमाण होती है। प्राचीन चित्रो के अनुसार काकणी रत्न की आकृति चित्र मे देखे।
काकणी रत्न विष को नष्ट करने वाला होता है। यह सदा चक्रवर्ती के स्कन्धाबार मे स्थापित रहता है। इसकी किरणे बारह योजन तक फैलती है। जहाँ चन्द्र, सूर्य, अग्नि आदि अन्धकार को नष्ट करने मे समर्थ नही होते, ऐसी तमिस्रा गुफा मे यह काकणी रत्न अन्धकार को समूल नष्ट कर देता है। प्रमाणागुल की लम्बाई (आयाम) उत्सेधागुल से ४०० गुनी तथा चौडाई (विष्कंभ) २ गुनी अधिक होती है। ४०० को २३ गुना करने पर प्रमाणागुल उत्सेधागुल से हजार गुना होता है। टीकाकार ने प्राचीन तीन मतों का उल्लेख करके बताया है कि भगवान महावीर का १ आत्मागुल २ उत्सेधागुल के समान होता है। अर्थात् एक उत्सेधागुल = अर्ध-आत्मागुल होता है। टीकाकार के इन उल्लेखो के अनुसार भगवान महावीर का शरीर उत्सेधागुल से ७ हाथ प्रमाण, आत्मागुल से (भगवान महावीर के अगुल से) ८४ अगुल = ३३ हाथ प्रमाण था।
359. By this standard of angul, six anguls make one paad, twelve anguls make one vitastı, twenty four anguls make one ratni, forty eight anguls make one kukshi and ninety six anguls make one dand or dhanush or yuga or aksha or musal. By this standard of dhanush, two thousand dhanushas make one gavyut and four gavyuts make one yojan.
Elaboration In the aforesaid aphorisms the word meaning of pramanangul is mentioned and then its exact magnitude has been defined in this context simple definition of a Chakravartı emperor has been given alongwith the dimensions of his Kakını jewel and the atmangul (own finger) of Bhagavan Mahavir
Like Tirthankars, Chakravartı emperors also live during the third and fourth epochs of the progressive and regressive cycles of time There are twelve Chakravartis in one regressive cycle and only one at a time. His reign extends to all the six divisions of Bharat area Every Chakravarti possesses fourteen jewels, seven one-sensed and seven five
Skirtakine
YON
Gok
अवगाहना-प्रकरण
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The Discussion on Avagahana
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