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(४) वालुयपभापुढवीए णेरइयाणं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? ___ गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-१. भवधारणिज्जा य, २. उत्तरवेउब्विया य।
तत्थ णं जा सा भवधारणिज्जा सा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं एक्कतीसं धणूई रयणी या __तत्थ णं जा सा उत्तरवेउविया सा जहन्नेणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं, उक्कोसेणं बासटुिं धणूई दो रयणीओ य।
(४) (प्र.) भगवन् ! बालुकाप्रभापृथ्वी के नारकों की शरीरावगाहना कितनी कही गई है ?
(उ.) गौतम ! उनकी शरीरावगाहना दो प्रकार से कही है-(१) भवधारणीय, और (२) उत्तरवैक्रिय।
इन दोनो में से प्रथम भवधारणीय शरीरावगाहना जघन्य अगुल के असंख्यातवे भाग 2 और उत्कृष्ट इकतीस धनुष तथा एक रत्निप्रमाण है। * उत्तरवैक्रिय शरीरावगाहना जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग और उत्कृष्ट बासठ धनुष ॐ और दो रलिप्रमाण है। son (4) (Q.) Bhante ! How large is the avagahana (space occupied) by
the body of a naarak (infernal being) of the Balukaprabha land ? ___(Ans.) Gautam ! The avagahana (space occupied) by the body of
a naarak (infernal being) of the Balukaprabha land is of two
kinds—(1) Bhavadharaniya (by the normal body), and (2) Uttar. * varkriya (by the secondary transmuted body).
Of these the minimum avagahana (space occupied) of the Bhavadharaniya (normal) body is innumerable fraction of an
angul and the maximum is thirty one dhanushas and one ratni. 3 The minimum avagahana (space occupied) of the Uttar
varkriya (secondary transmuted) body is countable fraction of an angul and the maximum is sixty two dhanushas and two ratnis.
(५) एवं सब्यासिं पुढवीणं पुच्छा भाणियव्वा-पंकप्पभाए भवधारणिज्जा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं उक्कोसेणं बासद्धिं धणूई दो रयणीओ य, उत्तरवेउविया जहन्नेणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं उक्कोसेणं पणुवीसं धणुसयं। सचित्र अनुयोगद्वार सूत्र-२
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Ilustrated Anuyogadvar Sutra-2
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