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" औधिक रूप से बादर वनस्पतिकायिक जीवो की अवगाहना जघन्य अगुल के * असख्यातवें भाग प्रमाण और उत्कृष्ट कुछ अधिक एक हजार योजन प्रमाण है। * विशेष-अपर्याप्त बादर वनस्पतिकायिक जीवो की जघन्य और उत्कृष्ट अवगाहना अंगुल * के असंख्यातवें भाग प्रमाण है। पर्याप्त (बादर वनस्पतिकायिक जीवों) की जघन्य अवगाहना * अगुल के असंख्यातवे भाग प्रमाण और उत्कृष्ट कुछ अधिक एक हजार योजन प्रमाण * होती है।
विवेचन-यहाँ ज्ञातव्य है कि असख्यात के भी असख्यात भेद होते है। जघन्य की अपेक्षा उत्कृष्ट अवगाहना अधिक होती है। उसमे तरतमता रहती है। जैसे-पाँच स्थावर की जघन्य अवगाहना सभी जगह अगुल के असख्यातवे भाग बताई है परन्तु इन असख्यात में भी बहुत तरतमता है। असख्यात भाग सभी का सदृश नहीं होता। जैसा कि भगवतीसूत्र मे बताया है
- असख्य सूक्ष्म वनस्पतिकायिक जीवो के शरीर = एक सूक्ष्म वायुकायिक जीव का शरीर। - असख्य सूक्ष्म वायुकायिक जीवो के शरीर = एक सूक्ष्म तेजस्कायिक जीव का शरीर।
असख्य सूक्ष्म तेजस्कायिक जीवो के शरीर = एक सूक्ष्म अप्कायिक जीव का शरीर। असख्य सूक्ष्म अप्कायिक जीवो के शरीर = एक सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव का शरीर। असख्य बादर वायुकायिक जीवो के शरीर = एक बादर तेजस्कायिक जीव का शरीर।
असख्य बादर तेजस्कायिक जीवो के शरीर = एक बादर अप्कायिक जीव का शरीर। - असख्य बादर अप्कायिक जीवो के शरीर = एक बादर पृथ्वीकायिक जीव का शरीर।
___ (भगवतीसूत्र १९/३३) (2) (Q.) Bhante ! How large is the avagahana (space occupied) by the body of a Vanaspatıkayık (plant-bodied) being ? ___(Ans.) Gautam । The minimum avagahana (space occupied) by the body of a Vanaspatıkayık (plant-bodied) being is innumerable fraction of an angul and the maximum is a little more than one thousand yojans.
The minimum as well as maximum avagahanas (space occupied) generally by the body of a Sukshma Vanaspatıkayık (minute plant-bodied) being and specifically by the body of a Sukshma Aparyapt or a Paryapt Vanaspatıkayık (minute underdeveloped and fully developed plant-bodied) being is
innumerable fraction of an angul * सचित्र अनुयोगद्वार सूत्र-२
Illustrated Anuyogadvar Sutra-2
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