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द्वीन्द्रिय जीवों की अवगाहना
३५०. (१) एवं बेइंदियाणं पुच्छा भाणियव्या-बेइंदियाणं पुच्छा-गोयमा ! जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं बारस जोयणाई; अपज्जत्तयाणं जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेज्जइभाग; पज्जत्तयाणं ज. अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं बारस जोयणाई। ___ ३५०. (१) (प्र.) द्वीन्द्रिय जीवो की अवगाहना कितनी है ?
(उ.) गौतम ! (सामान्य रूप से) द्वीन्द्रिय जीवों की जघन्य अवगाहना अगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट बारह योजन प्रमाण जानना चाहिए। अपर्याप्त (द्वीन्द्रिय जीवो) की जघन्य और उत्कृष्ट अवगाहना अगुल के असख्यातवें भाग प्रमाण है। पर्याप्त (द्वीन्द्रिय जीवो) की जघन्य शरीरावगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट बारह योजन प्रमाण है।
विवेचन-द्वीन्द्रिय जीवो की अवगाहना-वर्णन के प्रसग मे पर्याप्त द्वीन्द्रिय जीवो की उत्कृष्ट अवगाहना बारह योजन प्रमाण बतलाई है, वह स्वयभूरमणसमुद्र मे उत्पन्न शखो आदि की अपेक्षा से कही गई है। द्वीन्द्रिय समस्त जीव बादर ही होते है, सूक्ष्म नही, अत यहाँ पाँच स्थावर कायिको की भॉति सूक्ष्म-बादर का भेद नही है। DVINDRIYA (TWO-SENSED) BEINGS ___350. (1) (Q.) Bhante | How large is the avagahana (space occupied) by the body of a dvindriya (two-sensed) being ?
(Ans.) Gautam ! The minimum avagahana (space occupied) by the body of a duindriya (two-sensed) being is (generally) innumerable fraction of an angul and the maximum is twelve yojans The minimum as well as maximum avagahana (space occupied) by the body of an Aparyapt dvindriya (underdeveloped two-sensed) being is innumerable fraction of an angul. The minimum avagahana (space occupied) by the body of a Paryapt Badar duindriya (fully developed gross two-sensed) being is innumerable fraction of an angul and the maximum is twelve yojans
Elaboration—In context of the space occupied by the body of a two-sensed being the maximum is mentioned as twelve yojans This
सचित्र अनुयोगद्वार सूत्र-२
(106)
Illustrated Anuyogadvar Sutra-2
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