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(५) (क) (प्र.) भगवन् ! अब भुजपरिसर्पस्थलचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की अवगाहना जानने की जिज्ञासा है ?
(उ.) गौतम ! सामान्य से भुजपरिसर्पस्थलचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट अवगाहना गव्यूतपृथक्त्व (दो गाऊ से नौ गाऊ तक) की है।
(ख) (प्र.) भगवन् ! सम्मूर्छिम भुजपरिसर्पस्थलचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की अवगाहना कितनी है? __(उ.) गौतम ! जघन्य अगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट धनुषपृथक्त्व (दो धनुष से नौ धनुष तक) की है।
(ग) (प्र.) भगवन् ! अपर्याप्त समूर्छिम भुजपरिसर्पस्थलचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की अवगाहना कितनी है ?
(उ.) गौतम ! उनकी जघन्य और उत्कृष्ट शरीरावगाहना अंगुल के असंख्यातवे भाग प्रमाण है।
(घ) (प्र.) भगवन् ! पर्याप्त समूर्छिम भुजपरिसर्पस्थलचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिको की अवगाहना कितनी है?
(उ.) गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट धनुषपृथक्त्व की है।
(च) (प्र.) भगवन् ! गर्भव्युत्क्रान्तिक भुजपरिसर्पस्थलचरपंचेन्द्रियतिर्यचयोनिकों की शरीरावगाहना कितनी है?
(उ.) गौतम ! उनकी शरीरावगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट गव्यूतपृथक्त्व समझनी चाहिए।
(छ) (प्र.) भगवन् । गर्भव्युत्क्रान्तिक अपर्याप्त भुजपरिसर्पस्थलचरपंचेन्द्रियतिर्यचयोनिकों की शरीरावगाहना कितनी है?
(उ.) गौतम ! उनकी शरीरावगाहना जघन्य और उत्कृष्ट अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है।
(ज) (प्र.) भगवन् ! पर्याप्तक गर्भव्युत्क्रान्तिक भुजपरिसर्पस्थलचरपचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की शरीरावगाहना कितनी है ?
(उ.) गौतम ! जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट गव्यूतपृथक्त्व प्रमाण है। सचित्र अनुयोगद्वार-सूत्र-२
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Illustrated Anuyogadvar Sutra-
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