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६. (क) खहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं., गो. ! जह. अंगु. असं., उक्को. - धणुपुहत्तं।
(ख) सम्मुच्छिमखहयराणं जहा भुयपरिसप्पसम्मुच्छिमाणं तिसु वि गमेसु तहा भाणियव्वं।
(ग) गब्भवक्कंतियाणं जह. अंगु. असं., उक्को. धणुपुहत्तं। __(घ) अपज्जत्तयाणं जह. अंगु. असं., उक्को. अंगु. असं.।
(च) पज्जत्तयाणं जह. अंगु. असं., उक्को. धणुपुहत्तं ।
(६) (क) (प्र.) भगवन् ! खेचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की शरीरावगाहना कितनी है? 6 (उ.) गौतम ! उनकी जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट धनुषपृथक्त्व प्रमाण है।
(ख) तथा सामान्य संमूर्छिम खेचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक जीवों की जघन्य और उत्कृष्ट शरीरावगाहना संमूर्छिम जन्म वाले भुजपरिसर्पपचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों के तीन अवगाहना स्थानो के बराबर समझ लेना चाहिए।
(ग) (प्र.) भगवन् ! गर्भव्युत्क्रान्तिक खेचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक जीवों की शरीरावगाहना कितनी है?
(उ.) गौतम ! उनकी जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण और उत्कृष्ट धनुषपृथक्त्व प्रमाण है।
(घ) (प्र.) भगवन् ! अपर्याप्त गर्भव्युत्क्रान्तिक खेचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की अवगाहना कितनी है?
(उ.) गौतम ! उनकी जघन्य और उत्कृष्ट शरीरावगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है।
(च) (प्र.) भगवन् ! पर्याप्त गर्भव्युत्क्रान्तिक खेचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की शरीरावगाहना कितनी है? ___ (उ.) गौतम ! उनकी जघन्य शरीरावगाहना का प्रमाण अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट धनुषपृथक्त्व है।
अवगाहना-प्रकरण
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The Discussion on Avagahana
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