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तत्वार्थ सूत्रे
मूलसूत्रम्- “उत्तरोत्तरं सुहुमं आदिओ चत्तारि भयणिज्जाई - " ॥३०॥ छाया - उत्तरोत्तरं सूक्ष्मम् आदितश्चत्वारि भाज्यानि - " ॥३०॥ तत्वार्थदीपिका - पूर्वसूत्रे औदारिकादि पञ्च शरीराणां प्ररूपणं कृतम् सम्प्रतितेषामुत्तरोत्तरं सूक्ष्मत्वं युगपत् खलु कदाचित् - द्वे, कदाचित् त्रीणि, कदाचित् चत्वारि वा शरीराणि जीवविशेषस्य भवितुमर्हन्तीति प्रतिपादयितुमाह – 'उत्तरोत्तरं मुहुमं आदिओ चत्तारि भयणिजाई' इति तेषां खलु पूर्वसूत्रोक्तानामौदारिकादि पञ्चशरीराणां मध्ये पूर्वपूर्वशरीरापेक्षया उत्तरोत्तरंपरं परं सूक्ष्मम् सूक्ष्मपरिणामपुद्गलद्रव्यारब्धं बोध्यम् । सूक्ष्मत्वादेव प्रायशः वैक्रियादिशरीरचतुष्टयददर्शनं न भवति । अथौदारिकशरीरमुत्कृष्टेन सहस्त्रयोजनाधिकप्रमाणमेव शास्त्रे प्रतिपादितं वर्तते । वैक्रियन्तु — उत्कृष्टेन योजनलक्षप्रमाणमुक्तम् । अतः कथं तावद् औदारिकाद् वैक्रियं सूक्ष्ममुच्यते इतिचेत् — ३
सत्यम् । प्रमाणतो यद्यपि - वैकियशरीरम् औदारिकापेक्षयाऽतिमहद् भवति । तथापि— अदृश्यत्वात् वैक्रियशरीरं सूक्ष्ममेव व्यपदिश्यते, तत् पुनर्वैक्रियं शरीरं कदाचिद् वैक्रियकर्त्तुरिच्छ्या दृष्टिगोचरमपि भवतीति तु अन्यदेतत् । तथा च -- औदारिकाद् वैक्रियं सूक्ष्मम् । वैकियात् - आहारकं सूक्ष्मम्, आहारकात्-तैजसं सूक्ष्मम्, तैजसात् शरीरात्- कार्मणं शरीरं सूक्ष्मं भवति ।
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कार्मणशरीर का ग्रहण किया है । आहारक शरीर की अपेक्षा तैजस में और तैजस की अपेक्षा कार्मणशरीर में अनन्त प्रदेश अधिक होते हैं ॥ २९ ॥
सूत्र -- 'उत्तरोत्तरं मुहुमं' इत्यादि ॥ ३० ॥
मूलसूत्रार्थ — पूर्वोक्त शरीर उत्तरोत्तर सूक्ष्म हैं और एक जीव में एक साथ चार शरीरो की भजना है ॥३०॥
तत्त्वार्थदीपिता --- पूर्वसूत्र में औदारिक आदि पांच शरीरों की प्ररूपणा की गई है । शरीर उत्तरोत्तर सूक्ष्म हैं और किसी जीव के दो, किसी के तीन और किसी-किसी के चार तक एक साथ हो सकते हैं, यह बतलाने के लिए कहते है
पूर्वोक्त पाँच शरीरों में से पूर्व शरीर की अपेक्षा आगे-आगे के शरीर सूक्ष्म हैं अर्थात् सूक्ष्म परिणमन वाले पुद्गलद्रव्यों से बनते हैं । सूक्ष्म होने के कारण ही वैकिय आदि चार शरीर हमें प्रायः दिखाई नहीं देते हैं ।
शंका -- शास्त्र में औदारिक शरीर का उत्कृष्ट परिमाण एक हजार योजन से किंचित् अधिक कहा है जब कि वैकिय शरीर का उत्कृष्ट परिमाण एक लाख योजन से किंचित् अधिक का कहा गया है | ऐसी स्थिति में औदारिक की अपेक्षा वैक्रिय शरीर सूक्ष्म कैसे हो सकता है ?
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समाधान - सत्य है । परिमाण की अपेक्षा से यद्यपि औदारिक शरीर की अपेक्षा वैि शरीर बड़ा होता है, तथापि अदृश्य होने के कारण वह सूक्ष्म ही कहा जाता है । यह बात दूसरी है कि विक्रया करने वाले की इच्छा से उसका वैक्रिय शरीर दृष्टिगोचर भी हो सकता